जो आता है, कुछ सीखकर ही जाता है
udaipur. मेवाड़ की स्थापत्य कला का भी अपना एक योगदान है। जो भी यहां आता है, यहां से आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता। चाहे वह झीलें हो या प्रकृति की बिखेरी हुई अदभुत छटा हो। चाहे वह चित्रकारी हो या स्थापत्य कोई न कोई चीज पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर ही लेती है।
जगदीश चौक स्थित मंदिर के नीचे ही इजराइल से आई दो बालाओं ने जब पत्थजर को गढ़ने के बाद मूर्तियों के रूप में ढलते देखा तो वे बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह गईं। अपना आगे का सारा कार्यक्रम रद्द कर यहीं बैठ गईं और लगी सीखने। कलाकार से छैनी, हथौड़ा लिया और खुद पत्थरों को आकार देने में जुट गई। इन बालाओं से जब बात करने का प्रयास किया गया तो इनका सिर्फ यही कहना था कि लेकसिटी इज वंडरफुल।
कुम्हार के चाक पर जब गीली मिट्टी आकार लेकर किसी न किसी नए रूप में ढलती है और जब नई वस्तु् निखरकर सामने आती है तो पर्यटकों के मुंह से सिर्फ एक ही लव्ज निकलता है, वाह! यहां लगने वाले छोटे मोटे स्टॉल्स, मेलों में जब भी पर्यटकों को मौका मिलता है, वे अपना हाथ साफ करने बैठ जाते हैं।