शिल्पग्राम उत्सव—२०१२
चरी व होजागिरी ने रंगत बिखेरी
udaipur. पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव के तीसरे दिन रविवार को ‘‘धरोहर’’ में लोगों को पूरब और पश्चिम की लोक कला व संस्कृति के रंग एक मंच पर देखने को मिले। मुख्य रंगमंच ‘‘कलांगन’’ पर प्रस्तुत त्रिपुरा का होजागिरी तथा राजस्थान का चरी नृत्य दर्शकों को खूब रास आया इन नृत्यों ने अपने अंचल की लोक रंगत उत्सव में बिखेरी।
रंगमंच पर रविावर को कार्यक्रम की शुरूआत कथकली से हुई इसके बाद नेक मोहम्मद लंगा ने अपने चिर परिचित अंदाज में लोक गीत सुना कर दाद बटोरी। कार्यक्रम त्रिपुरा का होजागिरी नृत्य दर्शकों के लिये सुरम्य प्रस्तुति बन की। इसमें नृत्यांगनाओं ने सिर पर बोतल संतुलित करते हुए अपनी मंथर दैहिक थिरकन से समां बांध दिया। नृत्य के दौरान त्रिपुरा की बालाओं ने विभिन्न प्रकार की संरचनाएँ भी बनाई। मंच पर ही राजस्थान के किशनगढ़ का चरी नृत्य मनमोहनी पेशकश रही। बांकिये के स्वर और ढोल की थाप पर नृत्य के दौरान नर्तकियों ने अपने सिर पर चरी रख कर उसमें अग्नि प्रवाहित कर आकर्षक नृत्य प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में गोवा का वीरभद्र जहाँ शौर्यपूर्ण व ओजपूर्ण प्रस्तुति थी वहीं मध्यप्रदेश के ढिंढोर जिले के आदिवासियों का गुदुमबाजा ने अपना धूम धड़ाका जोशीले अंदाज में किया। इस दल द्वारा बनाई संरचनाओं व पिरामिड पर दर्शकों ने करतल ध्वनि से अभिवादन किया। उत्तराखण्ड का चापेली नृत्य कार्यक्रम की लुभावनी प्रस्तुति रही वहीं गुजरात के मेवासी कलाकारों ने अपनी तीव्र नृत्य रचनाओं से दर्शकों को रोमांचित कर दिया। धरोहर मेें इसके अलावा पंजाब का जिन्द, महाराष्ट्र का लावणी भी दर्शकों ने सराहा। उत्सव के चौथे दिन सोमवार को ‘‘लोक परंपरा’’ के अंतर्गत सांस्कृति सांझ का आयोजन होगा।
बढ़ी भीड़, खरीददारी ने पकड़ा जोर
यहां हवाला गांव स्थित शिल्पग्राम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा आयोजित शिल्पग्राम उत्सव—2012 के तीसरे दिन रविवार को बड़ी संख्या में लोग शिल्पग्राम पहुंचे तथा खरीददारी के साथ मेले की गतिविधियों का आनन्द उठाया। उत्सव के तीसरे दिन दोपहर में ही काफी संख्या में लोगों का शिल्पग्राम पहुंचने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ जो देर शाम तक जारी रहा। रविवार को अधिकांश लोग सपरिवार, मित्रों व परिजनों के साथ शिल्पग्राम पहुंचना शुरू हुए। लोगों के शिल्पग्राम पहुंचने का क्रम देर शाम तक जारी रहा। शिल्पग्राम परिसर में लागों का स्वागत बहुरूपिया कलाकारों, चलती फिरती पुतलियों तथा लोक कलाकारों ने किया। शिल्पग्राम के मंच गुर्जरी पर गुजरात के राठवा कलाकारों तथा जाम खेम्भालिया के डाया भाई निकुम के दल ने अपनी प्रस्तुतियों से आगंतुकों का ध्यानाकर्षण किया। यहां इन्होंने बेड़ा रास, गोप रास दर्शाया। मेले में ही बहुरूपिया कलाकारों ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। हाट बाजार का दौरा करते समय लोगों को कला विहार के पास उड़ीसा के सुबल महाराणा की रेत की नई कृति देखने को मिली। सुबल व उनके परिवार ने रेत पर भगवान शंकर के मुखमण्डल के आकल्पन के साथ—साथ कैलाश पर्वत को दर्शाया।
मेले में लोगों ने चित्रकार से अपना पोट्रेट बनवाया। हाट बाजार में लोगों का ध्यान मिट्टी के कलात्मक पॉट्स, मिट्टी की घंटियों, कश्मीरी शॉल, स्टॉल, गर्म कोट, जैकेट, ऊनी टोपी, हिमाचल व अंगोरा के शॉल, लाख की चूडिय़ाँ, पेपर मेशी काम, मधुबनी चित्रकारी, जूट के वॉलपीस, गुजरात का भरतकाम, कशीदाकारी, बाड़मेरी पट्टू, कच्छी शौल की दूकानों पर लोगों की काफी भीड़ रही। इसके अलावा अलंकरण में महिलाओं ने विभिन्न प्रकार के आभूषण देखे व पसंद कर खरीदे। सर्द मौसम के चलते लोगों ने बंजारा व्यंजन क्षेत्र में दाल ढोकले, मक्का की रोटी, मक्का की राब, गट्टे की साग, लाल मिर्च व हरे धनिये की चटनी के साथ चटखारे लिये।