वनाधिकार अधिनियम विषयक राज्यस्तरीय कार्यशाला
udaipur. राजस्थान के जनजाति क्षेत्रीय विकास आयुक्त डॉ. सुबोध अग्रवाल ने कहा कि वनाधिकार अधिनियम का लाभ इसे वास्तविक पात्र व्यक्तियों को तब ही मिल सकता है जबकि इस अधिनियम की मूल भावना को समझते हुऐ ग्राम सभा स्तर तक इसे पहुंचाया जाये। उन्होंने अधिकारियों से कहा वे अधिनियम की परिभाषा को समझें और इसका लाभ वास्तविक तबके को दिलाने के प्रभावी प्रयास करें।
डॉ. अग्रवाल शुक्रवार को ओटीसी सभागार में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग की ओर से आयोजित ‘अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वनवासी (वन अधिकार मान्यता) अधिनियम 2006 नियम 2008 संशोधित नियम 2012 की क्रियान्वित एवं कठिनाइयां’ विषयक राज्यस्तरीय प्रशिक्षण कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने वनाधिकार अधिनियम एवं संशोधित नियमों का जिक्र करते हुए कहा कि अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य परम्परागत निवासियों के वनाधिकार प्रकरणों में अर्हताएं अलग-अलग हैं जिन्हें अधिनियम के तहत दी गई व्याख्या की शब्दश: पालना के साथ लागू करने की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि सामुदायिक वनाधिकार के प्रकरण के जनजाति वनाधिकार प्रकरणों के मुकाबले कम निस्तारित हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि वनाधिकार अधिनियम का लाभ 13 दिसम्बर 2005 को आधार मानकर दिया जायेगा। जनजाति प्रकरणों में जो प्राथमिक रूप से वनों मे निवासित वे व्यक्ति या परिवार शामिल होंगे जो जीविका की वास्तविक आवश्यकताओं के लिए वन भूमि या वनों पर निर्भर हैं। जबकि ‘अन्य परम्परागत वन निवासी‘‘ की श्रेणी में ऐसे सदस्य या समुदाय पात्र हैं जो 13 दिसम्बर 2005 से पूर्व कम से कम तीन पीढि़यों तक (75 वर्ष से) प्राथमिक रूप से वन या वन भूमि पर निवास करता आ रहा है और जो जीविका की वास्तविक आवश्यकताओं के लिए उन पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि अधिनियम के तहत आवेदक को पूरी कार्यवाई हो जाने तक भूमि से बेदखल नहीं किया जा सकेगा वहीं आवेदक को विभिन्न स्तर पर अपीलीय अधिकार होंगे।
जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग के उपायुक्त जितेन्द्र कुमार उपाध्याय ने पॉवर प्वाइन्ट प्रजेन्टेशन के जरिये अधिनियम की विस्तार से बिन्दुवार व्याख्या करते हुये बताया कि इस अधिनियम में प्रदत्त अधिकार वंशानुगत किन्तु अहस्तातरणीय होगा। टीआरआई निदेशक अशोक यादव ने कार्यशाला की पृष्ठभूमि पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताकि राज्य में वनाधिकार अधिनियम के तहत 1.25 लाख आवेदन प्राप्त हुए जिनमें से 50 फीसदी का निस्तारण किया जा चुका है। उपायुक्त (टीएडी) प्रियवृत पंड्या, एनजीओ के रमेश नंदवाना सहित राज्यभर से आए टीएडी विभाग के परियोजना अधिकारी, वन, ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज, राजस्व, सहित अन्य महत्वपूर्ण विभागों के अधिकारी एवं स्वयंसेवी संस्थानों के प्रतिनिधि मौजूद थे।