शोर-शराबे में खो गया उल्लास
पुराने वर्ष को अलविदा कह कर नए वर्ष के स्वागत में पलक-पाँवडे बिछाने का क्रम तब से बना हुुआ है जब से वर्ष का आरंभ हुआ होगा। पुराना वर्ष और नया वर्ष यह नियति का खेल है जो हर साल आता है। देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार इन्हें मनाने के रंग-ढंग अलग-अलग हैं।
लेकिन एक बात सभी जगहों के लिए समान रूप से लागू होती है। वह यह है कि संक्रमण की इस वेला को लोग अधीरतापूर्वक लेते हुए अपने आपको हवाले कर देते हैं उस भयंकर शोर-शराबे और क्षणिक आनंद प्राप्ति कराने वाली परिस्थितियों के, जिनसे कभी किसी को न तृप्ति मिल पायी है, न कभी हो पाया है आनंद का सच्चा अहसास। बल्कि हकीकत यह है कि चरम भोग-विलास की पूर्ति और अतृप्त वासनाओं का यह ओपन थियेटर ही हो जाता है जहाँ से जाने कितने व्यभिचारी मन से नव वर्ष में प्रवेश करते हैं।
नए संकल्पों के लिए मजबूत बुनियाद जरूरी : कहाँ तो लोग बुराइयों, व्यसनों, व्यभिचार व अनाचार तथा जीवन के संत्रासों से परे रहने का संकल्प लेने के लिए नव वर्ष के स्वागत को उत्सुक होते हैं और सब कुछ खा-पीकर या दूसरे रास्तों का सहारा लेकर बीते वर्ष को पुरानी यादों के साथ विदा देते हैं। पर संक्रमण के इन चन्द घण्टों में घटित हरकतों, उन्मुक्त पैशाचिक भोग-विलास, राक्षसी शोरगुल में रमने के बावजूद जब नए वर्ष में प्रवेश करते हैं तब भी इनके तन-मन से भोगे हुए ये आनंद इनसे दूर नहीं हो पाते या यो कहें कि जिन बातों को हमेशा के लिए छोड़ देने का संकल्प लेकर ये मौज उड़ाते हैं वे सारी बाते नए वर्ष में फिर उसी तरह स्थापित हो जाती हैं।
नए वर्ष के नए संकल्पों की हवा दो-चार दिन में ही निकल जाती है और फिर पूरे साल भर जैसे थे वैसे ही बने रहते हैं और ऎसे ही साल पर साल बीतते जाते हैं व ये लोग वैसे ही लक्षणों से भरे रहते हैं जैसे वर्षों पहले थे।
कमजोरियाँ त्यागें : एक बात यह अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है कि हम जब भी नए परिवेश में प्रवेश करें, कुछ नया ग्रहण करें और पुराने को धीरे-धीरे छोड़ते जाएं। अच्छी बातों व कामों की बजाय बुरी आदतों व उन चीजों तथा व्यवहारों को तिलांजलि देने की आवश्यकता है जिन्हें हमारे व्यक्तित्व की कमजोरी माना जाता है। इसके साथ ही हर नए अवसर पर जीवन निर्माण के लिए जरूरी अच्छी बातों को जीवन में अपनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। हर वर्ष हमारे जीवन में अच्छाइयों व उन्नयन का प्रभाव नहीं देखा जाए तो हमारा नव वर्ष मनाना और नव वर्ष के नाम पर धींगामस्ती व उल्लास पाने के नाम पर कान फोडू शोर तथा दूसरे आमिष-निरामिष जतन करना बेमानी हैं।
चित्त की भावभूमि स्वच्छ रखें : हर नया जीवन तभी सफल हो सकता है जब मन धीर-गंभीर, शांत और निर्वात जैसी स्थिति में हो, चित्त पूरी तरह विकारों से मुक्त व शुद्ध-बुद्ध हो। चिन्त की भाव भूमि एकदम खाली होने पर ही उसमें नवीन संकल्पों का बीजारोपण संभव है और ऎसा होने पर ही नव वर्ष में नवीन संकल्पों का पल्लवन-पुष्पन हो सकता है।
जो लोग पुराने वर्ष को विदाई देते समय पुरानी बातों को निकाल फेंक कर नववर्ष में इस प्रकार की भाव भूमि तैयार करने का माद्दा रखते हैं उनका पूरा जीवन संकल्पों का साकार स्वरूप लेकर आदर्श व प्रतिष्ठित जीवन के हरे-भरे-सुनहरे पुष्पों वाले उद्यान महका देता है। असल में ऎसे ही लोगों का नव वर्ष मनाना सार्थक है।
व्यभिचारी मन से नव वर्ष में प्रवेश न करें : नव वर्ष में प्रवेश की बुनियाद ही दूषित व व्यभिचारी होगी तब न संकल्प जीवित रह पाते हैं न भीतर का उल्लास। जो कुछ दृश्यमान होता है वह किसी महानगर में ऊँचे स्थान से गिरने वाले प्रदूषित और सडांध भरे सीवरेज प्रपात से बनते रहने वाले बुलबुलों और झाग से कम नहीं है जिसमें बहुधा रोशनी का कोई कतरा रंग बिखेरता दिखने लगता है।
विलासी स्वभाव त्यागे बगैर सब निरर्थक : दुनिया में अच्छे संकल्प लेना और कुछ कर दिखाने का ज़ज़्बा सभी के बस में नहीं होता। जो लोग शाश्वत आनंद के महास्रोत को जान लेते हैं और विलासी स्वभाव को त्यागने का सामथ्र्य रखते हैं वे ही दुनिया में अपना नाम कमाने का सामथ्र्य रखते हैं।
नए जीवन के लिए नवीन संकल्पों के साथ नव वर्ष में प्रवेश करने के लिए मन और तन को साफ सुथरा व सुविचारों से आलोकित करें तब ही नव वर्ष मनाने का औचित्य है वरना भोग-विलास मात्र के लिए नव वर्ष के स्वागत में जुट कर नए वर्ष की शुचिता को दूषित न करें, इसके लिए वर्ष भर में कोई भी दिन वर्जनीय नहीं है।
– डॉ. दीपक आचार्य