’प्राचीन कृषि विज्ञान’ के दूसरे अंक का विमोचन
Udaipur. एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. ओ. पी. गिल ने कहा कि हमारे पूर्वजों के पास कृषि का महत्वपूर्ण ज्ञान था, लेकिन हमारा ज्यादा झुकाव पश्चिमी संस्कृनति की ओर हो गया। इससे हम प्राचीन कृषि को भूलकर नई-नई विदेशी पद्धतियां अपनाने से हमारी भूमि दिन-प्रतिदन खराब होती गई।
वे एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डेशन एवं प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वएविद्यालय के तत्वावधान में एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउण्डेशन द्वारा सम्पादित प्राचीन कृषि विज्ञान बुलेटिन के दूसरे अंक के विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि हमारा देश भारत प्राचीन समय से ही कृषि प्रधान देश रहा है। हम आजादी के समय खाने के लिए अनाज विदेशों से मंगवाते थे, खेतों में बहुत कम पैदा होता था। फिर हरित क्रांति का दौर आया। नये-नये बीज आये। रासायनिक खादों का प्रचलन बढ़ा। कीड़ों व बीमारियों को रोकने के लिए नई-नई दवाईयां आयी। भरपूर अनाज पैदा होने लगा। आज गोदाम गेहूं, चावल व बाजरा से भरे पडे़ हैं लेकिन यह दौर बुराईयां भी साथ लाया। हमारे देश में प्राचीनतम समय से ही कृषि की जा रही है। अध्यक्षता राजस्थान कृषि विश्वकविद्यालय के पहले कुलपति प्रो. के. एन. नाग ने की। आरम्भ में फाउंडेशन के अध्यवक्ष डॉ. एम. एम. सिमलोट ने राजस्थान अध्याय की गतिविधियां बताईं। बुलेटिन के सम्पादन में डॉ. एम.एम. सिमलोट, डॉ. आई. जे. माथुर, डॉ. सुनील खण्डेलवाल, डॉ. गणेश राजामणि, डॉ. सुनील इन्टोदिया एवं डॉ. मीना सनाढ्य की मुख्य भूमिका रही। इस बुलेटिन में प्राचीन कृषि ज्ञान का सारगर्भित संकलन किया गया है। अन्यु अतिथियों में कुलसचिव डॉ. पी. के. गुप्ता, प्रसार शिक्षा निदेशालय के निदेशक डॉ. आई. जे. माथुर आदि भी मौजूद थे।