लोककला मंडल का स्थापना दिवस व नाट्य समारोह
Udaipur. भारतीय लोक कला मण्डल के 62 वें स्थापना दिवस समारोह एवं नवें पद्मश्री देवीलाल सामर नाट्य समारोह, दि परफोरमर्स के संयुक्त तत्वावधान में दूसरे दिन ‘भगवद्ज्जुकम’ ने दर्शकों को खूब लोटपोट किया ।
व्यवस्था सचिव गोवर्धन सामर ने बताया कि लोक कला मण्डल के मुक्ताकाशी रंगमंच पर बोधायन लिखित नाटक भगवद्ज्जुकम की कहानी में एक गुरु अपने दो चेलों के साथ हास्यास्पद स्थिति से गुजरता है, परन्तु वह अपने गुरु (साधु) के व्यक्तित्व को प्रभावित नहीं होने देता है । गुरू परिव्राजक अपने शिष्यों को योगाचार्य एवं प्रभाव बताने के लिये दया करके, एक स्त्री (गणिका), जिसको यमराज द्वारा प्राण लेने के लिये सांप बनकर डसा जाता है। उसकी मूर्च्छा( को वापस लाने के लिये गुरू अपनी आत्मा को बसंत सेना के शरीर में प्रवेश कराता है, उसके इस कमाल से यमराज भी आश्चर्यचकित हो जाता है, और वह फिर से आत्मा की अदला—बदली कर पूर्व स्थिति में ला देता है, लेकिन इससे पूर्व स्त्री की आत्मा में गुरु एवं गुरु की आत्मा में स्त्री का आना बहुत ही हास्यास्पद हो जाता है। उनके इस व्यवहार से शिष्यों सहित स्त्री की माता एवं सहेलियों तक अचंभित रह जाते हैं। गुरु द्वारा एक साधु होकर, यह प्रयोग शिष्यों के लिये एक सीख बन जाता है।
नाटक में गुरु की भूमिका में अभिषेक एवं शिष्यों की भूमिका में प्रबुद्ध पाण्डे एवं आदित्य ने सराहनीय अभिनय किया। बंसतसेना —शिप्रा चटर्जी, मधुकरिका— दिशा एवं सहेलियां क्रमश: मेहा, निमिषा एवं रिचा का नृत्य एवं अभिनय भी उत्तम रहा। रामिलक—तेजस, मित्र— सोनू एवं यमराज— कुशांक का अभिनय सराहनीय रहा वहीं वैद्य—गौरव ने अपने अभिनय के साथ न्याय किया। मंच—सज्जा सुनिल, राजकुमार, प्रकाश—सैयद आरिफ संगीत संचालन — रीना का प्रभावशाली था। दी परफोरमर्स की इस प्रस्तुति ‘‘भगवद्ज्जुकम’’ की निर्देशिका अनुकम्पा लईक थी।