मेले के दूसरे दिन ही जनता का उमडऩा शुरू
udaipur. गाडिय़ा लुहार की जिन्दगी सडक़ से शुरू होकर सडक़ पर ही रेंगती है। उनका न कोई ठोर होता है और न ही कोई ठिकाना। वे जितनी महेनत करते है उनके मुकाबले उसकी मजदूरी बहुत कम मिल पाती है। आज भी यह समुदाय बिना किसी तकनीक एंव आधुनिकरण की हवा से दूर रह का हाथों से ही अपना कार्य करते है।
रूडा (रूरल नॉन फार्म डवलपमेंट एजेंसी) की ओर से राष्ट्रीय क्राफ्ट मेला ‘गांधी शिल्प बाजार 2013’ में जयपुर के सवाईजयसिंह नगर से आये हजारीलाल गाडिय़ा लुहार इस बार अपने उत्पादों बिक्री को लेकर उदयपुर आयें है। मेलेे के दूसरे दिन ही शहरवासियों को मेले के प्रति रूझान अच्छा देखने का मिला। पिछले 25 वर्षो से अपने 8 परिवार के सदस्यों के साथ अपने कार्य को अमलीजामा पहना रहे हजारीलाल अब अपने इस पुश्तैनी काम में विदेशी पर्यटकों के लिए भी कुछ ऐसे उत्पाद बनाने प्रारम्भ किए है जिनसे कुछ अच्छी आमदनी हो जाती है। वे बताते है कि सबसे छोटे उत्पाद लोहे की मक्खी के एक पीस को बनाने में एक दिन का समय लगता है और उसे बाजार में 200 रूपयें में बेचा जाता है। वे किसानों के लिए लोहे की कुल्हाड़ी,दंातली अन्य के लिए चिमटा, करचू,छलनी,मधुमक्खी सहित अनेक प्रकार के कीट पतंग बनाते है। विदेशी पर्यटक मधुमक्खी का कानों में व अगुली में पहनने के लिए इस्तेमाल करते है।
हजारीलाल ने पिछले कुछ माह में लोहे के कुछ ऐसे उत्पाद हाथ से बनाये है जिनको लेकर वे राष्ट्रीय अवार्ड मिलने के प्रति आशान्वित है। इस उत्पाद में मुख्य रूप से गाडिय़ा लुहार की पहिचान बैलगाड़ी,लोहार,चोट करती लुहाड़ी,खाट, परेण्डी,मटकी,गाड़ी के पीछे कुत्ता, मुर्गा हाथ से बनाये है जो इस मेले का मुख्य आकर्षण बने हुए है। पिछले 7-8 वर्षो से विभिन्न मेले में जाने वाले हजारीलाल बातते है कि रूडा द्वारा इस प्रकार का मंच उपलब्ध कराये जाने से उनके जीवन में तथा उनकी आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया है। वे अपने यहंा 200 रूपयें से लेकर 15000 रूपयें तक के उत्पाद बनाते है। मंहगे उत्पाद विदेशी पर्यटक ही खरीदते है। रूडा के दिनेश सेठी ने बताया कि मेले के दूसरे दिन से ही जनता का मेले के प्रति रूझान सकारात्मक रहने से आयोजक व दुकानदार काफी आशान्वित है।