जनता को लुभा रहे हरियाणा के टेराकोटा के आइटम
Udaipur. पांच-छह इनमेल रंगो के प्रयोग से बिना रंग के टेराकोटा यानि पहाड़ी व स्टोन के मिश्रण से बने आइटमों पर रंग चढ़ाने से उनकी सुन्दरता में जो निखार आता है वह देखते ही बनता है। आज भी टेराकोटा के ये आइटम जनता की पहली पसन्द बने हुए है।
रूडा (रूरल नॉन फार्म डवलपमेंट एजेंसी) की ओर से टाऊनहॉल में आयोजित दस दिवसीय राष्ट्रीय क्राफ्ट मेला ‘गांधी शिल्प बाजार 2013’ में हरियाणा के गुडग़ांव जिले के सोना गांव से आये कन्हैयालाल प्रजापति पिछले 10 सालों से टेराकोटा मिट्टी के ये आइटम बनाकर देश-देश के कोने में पहुंचाने का काम कर रह है। टेराकोटा की मिट्टी से विभिन्न प्रकार की भगवान की मूर्तियां,बर्तन,फ्लावर पॉट, बैठने के लिए मुड्डे,तुलसी गमले, वाटर केन्डल्स के पॉट सहित गणेश चौकी पूरे मनोभाव से बनाते है। उन्होनें बताया कि इस प्रकार के मेलों में जाने से उनकी आर्थिक स्थिति में न केवल काफी सुधार आया है वरन् वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा तक दिलाने लगे है। अब टेराकोटा के आइटम घरों की शोभा बढ़ाने लगे है।
कन्हैयालाल बताते है कि एक दिन में हाथ से चाक के जरिये 10-12 पीस तैयार किये जाते है। जिन पर तीन दिन बाद रंग किया जाता है। वे अपने साथ इस बार में मेले में 50 रूपयें से लेकर 1 हजार रूपयें तक के टेराकोटा के आइटम ले कर आये है। इस कार्य में उनकी पत्नी के अलावा 4 बच्चों व मां का पूर्ण सहयोग मिलता है। कन्हैयालाल ने अपनी इस कला प्रशिक्षण अपने गुरू फरीदाबाद के सुखलाल प्रजापत से लिया।
रूडा के दिनेश सेठी ने बताया कि मेले का प्रथम रविवार होने के कारण जनता की काफी भीड़ रही। कारोबारियों के भी अच्छी बिक्री हुई। जिसमें बेजोड़ कलाकृतियां, रंग-बिरंगे परिधान, बांस व बेंत के फर्नीचर, लखनऊ के चिकन परिधान, तिरुपति का काष्ट कार्य, सिल्क साडिय़ां, पोकरण का टेराकोटा, कश्मीर के पश्मीना शॉल, गुलाबी नगरी की ब्लू पॉटरी, सहारनपुर का फर्नीचर, खुर्जा की पॉटरी, बनारस की साडिय़ां, राजघराने की परंपरागत हस्तीछपाई, कुंभकारी कला, चमड़े व पत्थर की कलात्मक वस्तुओं पर जनता का काफी जोर रहा।