दस दिवसीय मेले का समापन कल, बिक्री पहुंची 63 लाख
Udaipur. रूरल नॉन फार्म डवलपमेंट एजेंसी(रूडा) द्वारा टाऊनहॉल में आयोजित दस दिवसीय राष्ट्रीय क्राफ्ट मेला ‘गांधी शिल्प बाजार 2013’ का रविवार को समापन होगा। मेले में उमड़ी भीड़ से दस्तकार काफी उल्लासित दिखे। दोपहर में अतिरिक्त जिला कलक्टर मो. यासीन पठान भी पहुंचे जिन्होंने अपना स्कैच बनवाया।
रूडा के दिनेश सेठी ने बताया कि मेले में लगाई गई श्रेष्ठ स्टालों को अंतिम दिन पुरूस्कृत किया जाएगा। मेले के अतिम दिनों में जनता की काफी भीड़ उमड़ रही है जिस कारण मेले की बिक्री आठवें दिन 63 लाख तक पहुंच गई।
संघर्षरत कलाकार : कला बहुत कम लोगों के हाथों में होती है लेकिन पिता एंव दादा से विरासत में मिली उस कला को भावी पीढ़ीयों के लिए मंहगाई के इस वर्तमान दौर में बचाये रखना काफी मुश्किल होता जा रहा है। ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश के ग्वालियर से आये लक्ष्मीलाल सोनी एंव इनके पुत्र गजेन्द्र सोनी के साथ भी हो रहा है। ये पिता पुत्र ग्वालियर में पीतल पर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं की मूर्तियां, लेम्प, मंदिर की घंटिया आदि उत्पाद पर अपनी महीन कला का प्रदर्शन करते है।
प्रक्रिया-गजेन्द्र सोनी बताते है कि पीतल जैसी धातु पर अपनी कला का प्रदर्शन करना काफी कठिन है क्योंकि एक उत्पाद को तैयार करने में 4 से 6 माह तक लग जाते है। किसी भी उत्पाद का निर्माण करने से पूर्व उसका मिट्टी का संाचा तैयार करते है। उस मधु मक्खी का मोम यानि बेस कास्टिंग का लेप चढ़ाया जाता है। उसी मोम पर बारीकी नक्काशी की जाती है। नक्काशी के बाद पर लाल,पीली एंव बजरी तीनों को मिलाकर उसका लेप किया जाता है। तीन पीट की भट्टी में आग में इसे तपाकर मोम को निकाल लिया जाता है। तत्पश्चात पीतल को पिघलाकर उस संाचे में उसे डालकर उस पर छिनी,रेती व कलम से सफाई देने के लिए बारीक काम किया जाता है। अंत में उस पर बफिंग,पॉलिश व ऑक्सीडाईज़ की जाती है। तब तैयार होता पीतल का एक उत्पाद।
गजेन्द्र बताते है कि वे यहां 200 रुपए के छोटे गणेशजी से लेकर 30 हजार रुपए का शतरंज ले कर आये है। इस पारिवारिक कला में पिता को वर्ष 2001 में तथा स्वयं गजेन्द्र्र को वर्ष 2012 में मध्यप्रदेश सरकार ने राज्यस्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया है। अब ये अपने द्वारा बनायी गई कृति राष्ट्रीय मोर लेम्प के लिए मध्यप्रदेश के प्रतिष्ठित शिल्प गुरू पुरूस्कार के लिए आवेदन किया है। इनके द्वारा बनाये गये अनेक उत्पाद राजस्थान एंव मध्यप्रदेश के म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहे हैं।