Udaipur. जैसे-जैसे सुराज संकल्प यात्रा अपने पहले चरण की समाप्ति की ओर बढ़ रही है, भाजपा की गुटबाजी और गहराती जा रही है। यात्रा से पूर्व वसुंधरा ने कटारिया को अपने साथ तो रख लिया लेकिन कटारिया को साथ रखने में उन्हें अपने कई समर्थकों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है।
हालांकि मजबूरी वसुंधरा की भी समझी जा सकती है कि वे आरएसएस को दरकिनार करके नहीं चल सकतीं। कटारिया को जो कुछ भी मिलता है, वह सिर्फ और सिर्फ संघ के बूते पर मिल रहा है। वसुंधरा की यात्रा में कटारिया को रथ में सबसे आगे माइक पकड़ाकर बिठा दिया जो उनके समर्थकों को भी किसी तरह समझ में नहीं आ रहा है। जनता भी समझ रही है कि मेवाड़ में यात्रा निकालने के दौरान वसुंधरा ने किस तरह जयपुर और नई दिल्ली में ड्रामा किया था जिसके फलितार्थ कटारिया को अपनी यात्रा रद्द करनी पड़ गई थी और अब चुनाव आते ही दोनों ने वापस हाथ भी मिला लिए। यह सब भी कटारिया विरोधियों तथा समर्थकों का ही मानना है कि अब जनता को बेवकूफ बनाकर वोट नहीं लिए जा सकेंगे।
भाजपा के लोगों का मानना है कि अब संघ को यह पट्टा लगाणी का खेल बंद कर देना चाहिए। पट्टा लगाणी का मतलब होता है कि सामने तो हां में हां और ना में ना लेकिन पीछे हां में ना और ना में हां। विशेष रूप से कटारिया विरोधी लॉबी का मानना है कि या तो कटारियाजी को फुल पावर दे दें ताकि अन्य विरोधियों को पता चले और वे अपना अपना ठिकाना तलाश कर लें और या फिर कटारियाजी को बिल्कुल पावरलैस कर दें ताकि विरोधियों को भी अपनी जगह मिले। आधे अधूरे मन से न तो कटारियाजी को और न उनके विरोधियों दोनों को मजा आ रहा है। ऐसे अधर में लटकने पर फिर वही स्थितियां होती है जैसे ऋषभदेव गेस्ट हाउस में विरोधियों को देखकर कटारिया की हुई या गोगुंदा में सभा के दौरान मंच पर अर्चना शर्मा व कटारियाजी के बीच हुई। गेस्ट हाउस में इतना कुछ होने के बावजूद विरोधी वसुंधरा की सभाओं में बरकरार रहे। इसका अर्थ यह कि कटारियाजी को तवज्जो नहीं दी गई।
इस सबके दौरान कटारिया की धुर विरोधी किरण माहेश्वरी बिल्कुल ठगी सी रहीं। मतलब उन्हें कोई विशेष काम नहीं मिला सिवाय वसुंधरा राजे की मालाएं उठाने के, स्मृति चिह्न लेने के और उनकी पोशाक का ध्यान रखने के। एक ओर कटारियाजी माइक पकडे़ वसुंधरा की तूती बजाते रहे वहीं किरण उनके रथ में ध्यान रखती रहीं।
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श्री गौरव जी माथुर
शुक्रिया आपके कमेंट के लिए…
आपने इसे पेड न्यूज बताया। आपका अपना विचार हो सकता है। विचारों की अभिव्यक्ति करना आपका अधिकार है लेकिन इसे किसी भी रूप में न लिया जाए। इसमें जो भी तथ्य हैं, वे मनगढ़ंत नहीं बल्कि भाजपा कार्यकर्ताओं के ही हैं। एक बार पुन: आभार।
ho hi nahi sakta