‘आखि़र कब तक’ नुक्कड़ नाटक का फतहसागर की पाल पर मंचन
Udaipur. अब हर शाम बाहर निकलने से डर लगता है, हर रेल हर बस में चढ़ने से डर लगता है, समझ नहीं आता इंसान के रूप में कौन वहशी दरिंदा है, अक्सर सोचती हूं, किसमें इंसानियत मर गई और किसमें अभी जि़ंदा है? कुछ ऐसे ही सवालों से गुडि़या और दामिनी ने अपनी आपबीती को नुक्कड़ नाटक ‘आखिर कब तक’ के माध्यम से लोगों को बताई।
नुक्कड़ नाटक का मंचन रविवार शाम फतहसागर की पाल पर हुआ। मुख्य रूप से इसमें महिलाओं के साथ हो रही ज़्यादतियों और दुष्कर्म पर सवाल उठाए गए। आयोजन नाट्यांश और कर्माश्रम एच. आर. सोल्यूशन्स के तत्वावधान में किया गया। युवा कलाकारों ने दामिनी और गुडि़या के आपसी वार्तालाप से आपबीती को समाज के सामने प्रस्तुत किया। साथ ही देश के कानून और न्याय प्रणाली पर भी सवाल किया।
पहले दामिनी के साथ हुए दुष्कर्म के बाद देश भर में उठे विरोध और दामिनी के समर्थन में उठ खडे़ हुए लोगों के जोश और आक्रोश को देखकर लगा था कि अब ऐसे दुष्कर्मों को रोकने हेतु कड़े नियम तथा कानून बनेंगे, अपराधियों को सख़्त सजा मिलेगी लेकिन अफसोस कि दामिनी के बाद दरिंदों ने हैवानियत की हद पार कर दी और मासूमों के साथ दुष्कर्म का कुत्सित प्रयास किया।
नुक्कड़ का मुख्य उद्देश्य युवा पीढी को ऐसी ज्वलंत समस्याओं से अवगत करवा कर ऐसी कुरीतियों को जड़-मूल से नाश करना है। और एक ऐसे समाज की रचना करना है जहाँ लड़कियां और महिलाएं सुरक्षित रह सके। और समाज जो आंखें खोल कर सो रहा है, वो जागने की कोशिश करें। नाटक में दुष्यंत कुमार, अमिताभ बच्चन और सुधा अरोड़ा की कविताओं का बखूबी उपयोग किया गया है। नुक्कड़ के संयोजक अश्फ़ाक नुर ख़ान ने बताया कि अमित श्रीमाली लिखित नाटक में दामिनी के किरदार को रेखा सिसोदिया और गुडि़या के किरदार को ख़ुशबू ख़त्री ने निभाया। सहयोगी कलाकार की भूमिका में देव सुथार, पर्वतसिंह सिसोदिया, अब्दुल मुबिन खान, अशफ़ाक नूर ख़ान और अमित श्रीमाली थे।
नाटक का सारांश : नाटक में दामिनी और गुडि़या के बीच एक तार्किक संवाद है। दामिनी अपने साथ हुए अत्याचार के बाद भारत में ऐसे घिनौने कृत्य को रोकने हेतु कड़े कानून की उम्मीद करती है परन्तु हाल ही 5 साल की मासूम के साथ हुए अत्याचार के बारे में जानकर खुद को हारा हुआ मानती है। गुडि़या, दामिनी की हिम्मत बढ़ाते हुए बेहतर भविष्य की उम्मीद करती हैं।