विश्व जैव विविधता दिवस पर संगोष्ठी
Udaipur. जैव विविधता एवं पानी एक दूसरे के पूरक है। जल स्त्रोतों के विनाश से जैव विविधता समाप्त होती है, वहीं जैव विविधता के समाप्त होने से जल स्त्रोतों पर संकट आ जाता है। झीलों-तालाबों में प्रदूषण व पानी की घटती मात्रा एवं आयड़ नदी में अतिक्रमण एवं प्रदूषण ने उदयपुर घाटी की जैव विविधता को प्रायः नष्ट कर दिया है। सभी को मिलकर जल स्त्रोंतो एवं जैव विविधता को बचाने के लिये सक्रिय होना होगा।
ये तथ्य विश्व जैव विविधता दिवस पर विद्या भवन पॉलीटेक्निक महाविद्यालय में आयोजित “पानी एवं जैव विविधता” विषयक संगोष्ठी में उभरकर आए। गोष्ठी उप वन संरक्षक (उत्तर), विद्या भवन प्रकृति साधना केन्द्र, डा. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट, इण्डिया वाटर पार्टनरशिप (जीडब्ल्यूपी, इण्डिया) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। आरम्भ में उपवन संरक्षक सोहेल मजबूर ने सेमिनार के उद्देश्य की जानकारी दी। डा. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के सचिव नन्दकिशोर शर्मा ने पानी एवं जैव विविधता के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय आयामों को उदयपुर के सन्दर्भ में रेखांकित किया।
मुख्य वक्ता मुख्य वन संरक्षक के. के. गर्ग ने कहा कि वनों के कटाव से वन्यजीव प्रजातियां व लाभदायक वनस्पति समाप्त हो रही है। कृषि एवं पशुपालन के क्षेत्र में देसी प्रजातियों व नस्लों के संरक्षण के बजाय संकर नस्लों को अपनाया जा रहा है। इसी कारण फसलों, जीवों एवं इन्सानों में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का संक्रमण हो रहा है। हमें अपने पारस्परिक ज्ञान एवं नवीन वैज्ञानिक अनुसंधानों का समन्वय कर सहभागिता से झीलों, नदियों एवं जैव विविधता का बचाना होगा। इसी उद्देश्य को लेकर बारहवीं पंचवर्षीय योजना में निर्धारित लक्ष्य के तहत् उदयपुर के समीप चिरवा घाटी में जैव विविधता पार्क की स्थापना की जाएगी।
प्रो. अरूण चतुर्वेदी ने कहा कि दूनिया के विकसित देश जहां आबादी बहुत कम है, वे प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम दोहन कर रहे है, वहीं विकासशील देश जहां बड़ी संख्या में गरीब एवं मध्यमवर्गीय आबादी है, वहां तुलनात्मक रूप से पानी एवं जैव विविधता को कम नुकसान पहुंचा है।
विद्या भवन पॉलीटेक्निक महाविद्यालय के प्राचार्य व झील विज्ञानी अनिल मेहता एवं मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. पी. आर. व्यास ने कहा कि आयड़ नदी बेसिन की टोपोग्राफी, पहाड़ों एवं पहाड़ियों से बनने वाली प्राकृतिक जल प्रवाह व्यवस्था एवं पीछोला, फतहसागर सहित समस्त छोटे तालाबों के मूल स्वरूप व प्राकृतिक किनारों को बचाने से ही उदयपुर बचेगा। मेहता तथा व्यास ने कहा कि उदयपुर की झीलों को एक स्वीमिंग पूल की तरह दिवारें बनाकर बांधने के प्रयास जैव विविधता के लिये खतरा है। शोधकर्ता दीपेन्द्र सिंह शक्तावत ने कहा कि पिछोला में बनाई जा रही रिंग रोड़ प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक आवास को समाप्त कर देगी। प्रो. एस. बी. लाल ने कहा कि रिंग रोड पर वाहनों का आवागमन तथा मानवीय हस्तक्षेप पक्षियों के व्यवहार व प्रजनन पर गंभीर दुष्प्रभाव डालेगी।
विद्या भवन सोसायटी के व्यवस्था सचिव एस. पी. गौड़ ने कहा कि जल एवं जैव विविधता का संरक्षण जल मांग एवं आपूर्ति के प्रबंधन एवं मानवीय संवेदनाओं से जुड़ा हुआ है। डा. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय सिंह मेहता ने जैव विविधता संरक्षण विषय को पाठ्यक्रम की व्यवहारिक विषय वस्तु बनाने एवं जल एवं जैव विविधता संरक्षण में किशोरों, युवाओं एवं महिलाओं की प्रभावी भूमिका बढ़ाने पर जोर दिया। मत्स्य विभाग के पूर्व उप निदेशक इस्माईल अली दुर्गा एवं झील हितैषी मंच के हाजी सरदार मोहम्मद, आईएएस मुनिष गोयल तथा जल संरक्षक डा. पी. सी. जैन, कृषि वैज्ञानिक डा. श्रीराम आर्य, शिक्षाविद् सुशील दशोरा आदि ने भी विचार व्यीक्त किए। विद्या भवन प्रकृति साधना केन्द्र के प्रभारी डा. आर. एल. श्रीमाल ने अरावली की जैव विविधता को बचाने में विद्या भवन के प्रयासों को प्रस्तुत किया। धन्यवाद उपवन सरंक्षक आई. पी. एस. मथारू ने दिया। इस अवसर पर फतहसागर की पाल पर पानी एवं जैव विविधता पर प्रदर्शनी भी लगाई गई। प्रदर्शनी का उद्घाटन मुख्य वन संरक्षक (वन्य जीव) डा. एन. सी. जैन ने किया।
Hope such seminars/ workshops would bring the commoners closer to the Nature & their duties….