चलन ही जीवन है और जड़ता मृत्यु। यह बात दुनिया के हर जीव पर लागू होती है। मशीनें भी वे ही ठीक-ठाक रहती हैं जिनका निरन्तर उपयोग होता रहता है। यह बात मनुष्यों से लेकर पशु-पक्षियों तक में समान रूप में होती रहती है तभी तक जीवन के होने का अहसास होता है।
जो जितना अधिक चलता है वह उतना ही अधिक दीर्घजीवी और स्वस्थ रहता है। फिर जो हमेशा क्रियाशील रहता है उसी की जिन्दगी में मस्ती छायी हुई रहती है। यह बात सदियों और युगों से हमारे ऋषि-मुनियों और जीवन विज्ञान के अनुसंधाताओं द्वारा कही जाती रही है।
यहाँ हम मनुष्यों की ही चर्चा करें तो इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि जहाँ जड़ता आ जाती है वहीं से मनुष्य की मृत्युगामी यात्रा का आरंभ हो जाता है। यह जड़ता मन-मस्तिष्क, विचारों, भावों, संवेदनाओं से लेकर शरीर तक किसी की भी हो सकती है।
आज जड़ता हमारे सामने विभिन्न रूपों और आकारों में विद्यमान है। कोई आदमी कितनी ही भागदौड़ क्यों न करता रहे, बुद्धि या विचारों अथवा दिल से जड़त्व को अंगीकार कर चुका होता है अथवा परिस्थितियां उसे जड़त्व की ओर धकेलने में कामयाब हो ही जाती हैं। कई ऎसे हैं जो विचारों से क्रियाशील हैं मगर शरीर का कोई न कोई अंग साथ नहीं दे पा रहा है और ऎसे में शरीरस्थ जड़ता की वजह से इनकी प्रगति नहीं हो पा रही है।
कई ऎसे हैं जो हर तरह से पंगु हो चुके हैं फिर भी जाने कौन-कौन से मैदान मारने के फिराक में हैं। कइयों के जीवन में काम-काज और आराम, मन-बुद्धि और शरीर से काम लेने के घण्टों तथा व्यक्तिगत जीवन एवं सामाजिक जिन्दगी के बीच तालमेल का अभाव है।
इस प्रकार की ढेरों विषमताओं और असंतुलन के बीच जी रहे आदमी के लिए सेहत और मन की जाने कितनी उन्मादी अवस्थाओं का दिग्दर्शन हमें अपने आस-पास से लेकर दूरदराज तक हो रहा है। इन सभी प्रकार की समस्याओं के प्रति गहरा चिंतन करें तो एक बात साफ तौर पर उभर कर सामने आती है कि अपनी सेहत के प्रति हम दिनों दिन लापरवाह होते जा रहे हैं और यही कारण है कि यह लापरवाही हमें बाद में इतनी भारी पड़ती है कि पछतावे के सिवा हमारे पास कुछ होता ही नहीं है।
सेहत की रक्षा में सर्वाधिक कारक होता है भ्रमण। जो लोग निरन्तर कुछ किलोमीटर पैदल भ्रमण करने के आदी हैं वे औरों की अपेक्षा ज्यादा जीते हैं और लम्बे समय तक स्वस्थ और मस्त रहते हैं। सामान्य तौर पर ऎसे भ्रमणशील लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता दूसरों के मुकाबले खूब ज्यादा होती है।
इसलिए जीवन में नियमित तौर पर भ्रमण को अपनाने पर सर्वाधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। या तो स्वेच्छा से रोजाना कुछ किलोमीटर का भ्रमण नियमित रूप से करें अन्यथा जीवन के उत्तराद्र्ध में विवश होकर भ्रमण को अपनाना ही पड़ेगा।
उस अवस्था में हमारे सामने दो ही विकल्प होंगे – पहला यह कि भ्रमण को अपना कर शरीर को संतुलित करें अथवा दूसरा विकल्प बिना कुछ किए-धराए हमारे लिए स्वतः ही खुला है और इसके लिए अपनी ओर से कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, सिर्फ द्रष्टा भाव से देखते रहो। और वह है मौत की प्रतीक्षा।
आम तौर पर जो लोग युवावस्था के उत्तराद्र्ध से ही भ्रमण की आदत को अपना लेते हैं वे लोग जिन्दगी भर बीमारियों और परेशानियों से दूर रहते हैं और उन्हें अपने जीवन में अपेक्षाकृत काफी कम समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
प्रौढ़ावस्था प्राप्त होने पर तो यह दिनचर्या में शामिल होना ही चाहिए कि रोजाना पैदल भ्रमण करें। यह भ्रमण यदि शहर या गाँव से बाहर प्रकृति के आँगन में रमते हुए खुली हवा में किया जाए तो ज्यादा फायदेमंद होता है। इस अवस्था में यह पैमाना तय कर लेना चाहिए कि रोजाना जितनी रोटियाँ खाएं, उनके किलोमीटर पैदल जरूर चलें। इससे शरीर का सम्पूर्ण संतुलन अपने आप बना रह सकता है।
आमतौर पर लोग प्रौढ़ावस्था प्राप्त करते हुए मन्दिरों, चौराहों, पेढ़ियों, पाटों, चबूतरों आदि पर घण्टों गुजार देते हैं लेकिन भ्रमण पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। इन लोगों का जीवन सिमटने लगता है और शारीरिक रोग घेर लिया करते हैं। जबकि इन सभी लोगों को अपनी बैठक का कम से कम आधा समय भ्रमण में बिताना चाहिए।
जो बातें एक जगह बैठकर हो सकती हैं उन्हें पैदल चलते हुए किए जाने में दोनों प्रकार के लाभ पाए जा सकते हैं। कुछ स्थानों, समाजों तथा समूहों में भ्रमण की परंपरा बनी हुई है जो रोजाना सवेरे या शाम को कभी धार्मिक, दर्शनीय स्थलों, कभी किन्हीं कार्यक्रमों और जलसों आदि में शिकरत करते ही रहते हैं।
ऎसे लोगों का भ्रमण रोजाना की दिनचर्या में शामिल होता है। यह अपने आप में व्यायाम है और इस कारण इस किस्म के लोगों का शरीर स्वस्थ बना रहता है और खुली हवा में भ्रमण के सारे लाभों को ये प्राप्त करते रहते हैं।
किसी एक स्थान पर बैठे-बैठे परनिंदा, बकवास, जगत की चर्चा करने की अपेक्षा बेहतर होगा कि हम रोजाना अपने संगी-साथियों के साथ ही पैदल भ्रमण को अपनाएं ताकि हमारी सेहत अच्छी रहे और दुनिया में ज्यादा से ज्यादा दिन रहने के लिए सारी अनुकूलताएं प्राप्त होती रहें। आज के जमाने में भ्रमण को अपनाने के सिवा सेहत बनाए रखने का और कोई शोर्ट कट है ही नहीं।
– डॉ. दीपक आचार्य