Udaipur. महाराणा प्रताप कृषि एंव प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओ.पी. गिल ने वैज्ञानिकों का आहृवाहन् किया कि वैज्ञानिकों को पूर्ण लगन एंव ईमानदारी से कृषकों के लिये कार्य करना चाहिये। वे अनुसंधान निदेशालय मे आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय मक्का परियोजना के दो दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
प्रो. गिल ने कहा कि मेवाड़ में मक्का मुख्य फसल है और राजस्थान में इसका क्षेत्रफल अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है लेकिन उत्पादकता काफी कम है। सामान्य मौसम में कृषक अच्छा उत्पादन लेता है लेकिन उसकी प्रमुख समस्याएं मौसम का प्रतिकूल होना एंव कीट व व्याधियों का प्रकोप है, अतः सूखा, कीट एंव व्याधि प्रतिरोधी किस्मों के विकास की आवश्यकता है। साथ ही कृषि में लागत को कम करने की मांग है। राजस्थान में मक्का की उत्पादकता कम होने से उत्पादन लागत भी अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है।
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. पी. एल. मालीवाल ने कहा कि मेवाड़ में मक्का का करीबन 90 प्रतिशत क्षेत्रफल वर्षा आधारित है जहां सूखे की समस्या है व छोटी जोत होने से कृषि तकनीक का उपयोग पूर्णतया नहीं हो रहा है। फलस्वरूप उत्पादकता में राज्य पीछे है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षां से क्षेत्र में वर्षा की मात्रा बहुत कम नहीं हुई है, लेकिन वर्षा की अवधि कम होने से मानसून सितम्बर में ही खत्म हो जाता है जिससे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव प्रड़ता है अतः ऐसी किस्मों का विकास किया जाए जो सूखे कि विषम स्थिति को सहन कर सकें। डॉ. मालीवाल ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा मक्का की संकुल एंव संकर किस्में विकसित की गयी है जिन्होंने उत्पादकता बढ़ाने में अहम भागीदारी निभाई है लेकिन अब विकसित होने वाली संकर किस्में मक्का के लिए वरदान साबित होगी।
अन्तर्राष्ट्रीय मक्का एंव गेहूं शोध संस्थान (सिमिट) मैक्सिको के वैज्ञानिक डॉ. बी. एस. विवेक ने मक्का की कम उत्पादकता के लिए सूखे की समस्या को प्रमुख बताते हुए कहा कि मांजर निकलने के समय यदि सूखा मौसम रहता है तो मक्का का उत्पादन बहुत प्रभावित होता है अतः 24 ऐसी संकर किस्में तैयार की गयी है जो न केवल सामान्य मौसम में अच्छा उत्पादन देती है अपितु सूखे में भी 50-60 क्विंटल/हैक्टेयर उत्पादन देने की क्षमता रखती है। परियोजना के आयोजन सचिव डॉ. आर. बी. दुबे ने बताया कि कार्यशाला में फिलीपीन्स, मैक्सिको, वियतनाम, बांग्लादेश व भारत के 20 वैज्ञानिक भाग ले रहे है। संचालन वरिष्ठ शस्य वैज्ञानिक डॉ. दिलीपसिंह ने किया एवं धन्यवाद सिमिट के वैज्ञानिक डॉ. पी. एच. ज़ैदी ने ज्ञापित किया।