Udaipur. उत्त राखंड त्रासदी को लेकर एक ओर जहां उदयपुर से नारायण सेवा संस्थान का भेजा गया राहत दल वापस लौटा वहीं आलोक संस्थान के निदेशक डॉ. प्रदीप कुमावत ने हे केदार नामक लघु फिल्म बनाई है।
नारायण सेवा संस्थान के संस्थापक कैलाश मानव के निर्देश पर उत्तराखण्ड (केदारनाथ) भेजा गया राहत दल एक-दो दिन में आवश्यक खाद्यान्न सामग्री लेकर वापस देहरादून-उत्तरकाशी रवाना होगा जहां पीड़ितों के लिए राहत शिविर लगे हुए है। दल में शामिल प्रफुल्ल व्यास, विनोद चौबीसा, पंकज दाधीच व अरविन्द साण्डेरा ने बताया कि शिविरों में बर्तन व खाद्य सामग्री वितरित की गई।
उधर आलोक संस्थान में केदारनाथ आस्था त्रासदी : भावी संघर्ष और हमारा योगदान विषयक वार्ता में डॉ. प्रदीप कुमावत ने कहा कि राष्ट्रींय सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाये तो चारों धाम बिल्कुल सीमाओं पर बने हुए हैं। एक ओर चाईना है तो दूसरी तरफ बांग्लादेश है। इधर पाकिस्तान की सीमा है और दक्षिण में हिन्द महासागर की सामुद्रिक सीमा है। इन चारों धाम पर लोगों का निरन्तर आवागमन बना रहे ताकि हमारी सीमा भी सुरक्षित रहे और लोग भी चाक-चौबंद रहें। इससे बड़ा राष्ट्री्य उदाहरण कोई नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा कि केदार की भूमि जागृत और सबसे चेतन भूमि है। जहां प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की गई वर्षाजल, पेड़ के होने कारण पूरे भारत पर आच्छादित होकर बरस जाया करते थे। अब पेड़ों के न होने से सीधे हिमालय के तलहटी पर बादल फटने के रूप में परिवर्तित होते हैं। इसे प्राकृतिक आपदा मानने की बजाय मानवीय आपदा मानना ज्यादा सार्थक होगा। उन्होंने कहा कि त्रासदी के कारणों में एक प्रमुख कारण चोराबारी ग्लेशियर का फटना था। केदारनाथ के पास ही धारीदेवी का मन्दिर है उसकी मूर्ति हटाने की कोशिश की गई थी। इसी कारण त्रासदी हुई ऐसा भी लोगों का मानना है। त्रासदी के मृतकों की आत्मा की शांति के लिये श्रद्धांजलि सभा हुई। डॉ. कुमावत द्वारा निर्देशित व लिखित लघु फिल्म हे केदार का भी प्रीमियर किया गया। यह फिल्म गत दिनों उत्तराखण्ड में हुई त्रासदी पर आधरित है। मनमोहन भटनागर ने सम्पादित कर एक लघु फिल्म के रूप में प्रस्तुत किया। वरिष्ठे अध्यापिका भानु प्रिया सेन ने धन्यभवाद दिया।