Udaipur. झीलों की नगरी बेतरतीब फैलते जा रहे पॉलीथिन और प्लास्टिक के कचरे से बदरंग दिख रही है। यह कचरा झीलों की खूबसूरती को ख़त्म करने पर आमादा है और प्रशासन, प्रन्यास व निगम मौन साधे हैं।
राजस्थान सरकार द्वारा प्रतिबन्ध के बावजूद इसका यहाँ वहा मिलाना चिंताजनक है। उक्त विचार डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट में आयोजित पॉलीथिन और हमारा शहर विषयक संवाद में वक्ताहओं ने व्यक्त किए। झील समिति के सहसचिव अनिल मेहता ने आक्रोश व्यक्त करते कहा की उदयपुर की बड़ी विचित्र स्थिति है। यहां कोई प्रतिबन्ध क्रियान्वित नहीं हो पाता, यह प्रशासकीय असफलता है जो पॉलीथिन के संदर्भ में भी देखी जा सकती है। झील संरक्षण समिति के सचिव डॉ. तेज राजदान ने कहा कि रिसाइकिल्ड प्लास्टिक व पॉलीथिन बनाने में काम में लिया गया रसायन पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है तथा शहर की झीलें शहर की पेयजल स्त्रोत हैं अतः ये मानव शरीर के लिए भी दुष्प्रभावशाली है।
चांदपोल नागरिक समिति के तेज शंकर पालीवाल ने बताया कि गाड़िया देवरा, ब्रह्पोल, घंटाघर. चांदपोल, आम्बापोल आदि अनेक स्थानों पर सीवर लाइन के जाम होने और सीवर पम्प के लगातार ख़राब होने का मूल कारण भी पॉलीथिन और प्लास्टिक का कचरा ही है जो सीवर लाइन को ब्लॉ क कर देता है और सीवर की समस्या बनी रहती है। डॉ. मोहनसिंह मेहता ट्रस्ट के सचिव नंदकिशोर शर्मा ने कहा कि पॉलीथिन जीव जगत और पर्यावरण के लिए घातक होने के साथ ही शहर में जल भराव व नालियों के अवरुद्ध होने का भी यह एक प्रमुख कारण है। इसे तुरंत रोकने व इसकी बिक्री व उत्पादन पर कड़ी कार्यवाही की जरूरत है। संयोजन करते हुए ट्रस्ट के नितेशसिंह ने धन्यवाद दिया।