Udaipur. स्वतंत्रता के पश्चात् उदयपुर के तीन मास्टर प्लान बने। इसके बावजूद उदयपुर का बेतरतीब फैलाव हुआ। वर्ष 1997 में बने एवं 2003 में अधिसूचित हुए 2022 तक के मास्टर प्लान को 2012-13 में ही वापस बदलने की जरूरत क्योंख पड़ी।
ऐसे ही कुछ सवाल शनिवार को डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट एवं झील संरक्षण समिति के संयुक्त तत्वावधान में हुए संवाद में उभर कर आए। आरम्भ में अनिल मेहता ने ड्राफ्ट मास्टर प्लान के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को सभी के समक्ष रखा। मेहता ने कहा कि छोटे तालाबों व उनके जल आवक-प्रवाह व निकास मार्गों को मास्टर प्लान में नहीं दर्शाया गया है। सिंचाई विभाग के पूर्व अधीक्षण अभियंता जी. पी. सोनी, प्रमुख वास्तुविद् बी. एल. मंत्री एवं लोक अभियोजक त्रिभुवननाथ पुरोहित ने कहा कि मास्टर प्लान की कॉपी सभी नागरिकों को निःशुल्क मिलनी चाहिए। साथ ही नागरिकों को न्यूनतम तीन माह का अवसर अपने सुझाव प्रेषित करने के लिए दिया जाना चाहिए। सोनी ने कहा कि 1997 के मास्टर प्लान को विदड्रा किए बिना नया मास्टर प्लान बनाना तकनीकी व वैधानिक दृष्टि से सही नहीं है। झील संरक्षण समिति के डॉ. तेज राजदान एवं बी. एन. संस्थान के पूर्व उपाचार्य अरूण जकारिया ने कहा कि मास्टर प्लान में दर्शाये गये आंकड़ों की विश्वसनीयता को जाँचने की जरूरत है। मास्टर प्लान को बिना किसी विस्तृत सर्वेक्षण के लिखा गया है। इसी कारण यह बहुत सतही है।
इस अवसर पर सुखाड़िया विश्वविद्यालय के पूर्व सम्पदा अधिकारी एवं इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स के पूर्व अध्यक्ष एस.एल. गोदावत, वरिष्ठ नागरिक रवि भण्डारी, नन्दकिशोर शर्मा, चांदपोल नागरिक समिति के तेजशंकर पालीवाल, जयकिशन चौबे, कैलाश कुमावत, हाजी सरदार मोहम्मद ने भी विचार व्यतक्तव किए।