बढ़ रही है दूरियां संतों और श्रावकों में
27 सितंबर को जाएगी सम्मेदशिखर के लिए ट्रेन
Udaipur. अंतर्मना मुनि प्रसन्न सागर ने कहा कि आज संत साधक होने के बजाय प्रभावक हो रहे हैं। यही कारण है कि संतों और श्रावकों के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं। आज संत साधना के बजाय प्रभावना में विश्वास करने लगे हैं। शायद यही कारण है कि संतों और श्रावकों के बीच दूरियां बढ़ गई हैं।
वे रविवार को यहां सर्वऋतु विलास स्थित दिगम्बर जैन मंदिर में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। गत वर्ष एक दिगम्बर जैन मुनि के चातुर्मास में चार माह के बजाय 11 माह उदयपुर में ही गुजार देने के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसे संत लक्ष्य से भटककर विश्वासघात कर रहे हैं। पुराने साधक देसी घी होते थे जबकि आज के साधक बिल्कुल उलट हो गए हैं। अपने नाम के पीछे, प्रसिद्धि के पीछे दौड़ता है। संत का काम तो है धर्म की बात करे। दुखियों के दुख दूर करे। समाज को नई दिशा दे और ऊंचाईयों तक ले जाए। बुराई से बचाकर पुण्य की राह दिखाए।
उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि आज के इस भौतिक युग में मौन रहने का जमाना नहीं रहा। जिस प्रकार संत की समाज से दो रोटी की अपेक्षा रहती है उसी प्रकार समाज भी दो रोटी के बदले संत से बहुत अपेक्षा करता है। उन्होंने बताया कि 13 अगस्त को भगवान पाश्र्वनाथ का निर्वाण महोत्सव मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि भगवान पाश्र्वनाथ ने बहुत कष्ट सहन किए। हंसते हंसते कष्ट सहन करने के बावजूद जनता को अहिंसा का मार्ग दिखाया। इन चार मास (चातुर्मास) में भगवान पाश्र्वनाथ, भगवान श्रीकृष्ण, भगवान श्री राम का जन्मोत्सव मनाते हैं। इसके बाद 20 अगस्त को रक्षाबंधन पर वात्सल्य दिवस मनाया जाएगा।
उन्होंने अपने चातुर्मास के कार्यक्रम के बारे में बताया कि 27 सितम्बर से 1 अक्टूबर तक पांच दिवसीय सम्मेदशिखरजी की यात्रा के लिए उदयपुर के श्रावकों के लिए एक ट्रेन ले जाई जाएगी। इसका शुल्क नाममात्र एक हजार रुपए का कूपन रखा गया है। इसमें जैन-अजैन कोई भी जा सकेगा। इसके बाद पर्यूषण महोत्सव 9 से 18 सितम्बर तक मनाया जाएगा। चातुर्मास के बाद यहां से 10 नवम्बर को इंदौर की ओर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के लिए प्रस्थान होगा।