फतहनगर. क्रोध हमारे आत्मिक गुणों को हानि पहुंचाता है। अत: यह हमारा दुश्मन है। यह आत्म साधना में विध्र पैदा करता है। इसकी वृत्ति है कि वह दूसरों की नहीं सुनता। क्रोधी स्वयं अशांत रहता है और दूसरों को भी अशांत कर देता है। ये उद्गार मेवाड़ प्रवर्तक मदन मुनि ने घासा में नियमित धर्मसभा के दौरान व्यक्ते किए।
क्रोध प्रीति का नाश करता है। दूसरों को हीन मानता है और सामाजिक और पारिवारिक जीवन की एकता को तहस नहस कर देता है। क्रोध से पतन होता है। उन्होन कहा कि हंसते खेलते जीवन को क्रोध नरक में भेज देता है। जीवन को शांत बनाने के लिए क्रोध का त्याग ही सबसे उत्तम मार्ग है। डॉ.सुभाषमुनि ने कठोर वचन, असत्य वचन, चुगली करना, बिना मतलब बकवास करना आदि की व्याख्या करते हुए कहा कि इन दोषों से जो बचता है वही धर्म साधना में विकास करता है। अपनी वाणी को हीरा बनाए बाण नहीं। प्रदीप मुनि ने कहा कि आत्म तत्व अखण्ड है। अखण्ड की साधना करने वाला कभी खण्डित नहीं होता है। अपने आप को जानने वाला ज्ञानी है। रविन्द्र मुनि ने भी धर्मसभा को सम्बोधित किया। इस अवसर पर संघ अध्यक्ष माधवलाल बड़ालमिया, लक्ष्मीलाल डांगी, समरथ बड़ालमिया समेत अन्य समाज जन भी मौजूद थे।