Udaipur. जिनका बचपन रहा तो ऐसा कि युगों युगों बाद आज भी बच्चे को माता कन्हैया कहकर पुकारती है। जवानी रही तो ऐसी कि मोहल्लों में युवाओं को देखकर लोग फिकरा कसते हैं कि बड़ा कन्हैया बना फिरता है। फिर साहस दिया तो ऐसा कि पांच लड़कों को अनंत अक्षुण्ण सेना पर विजयी बना दिया। ज्ञान दिया तो गीता जैसा जिस पर कई नोबल पुरस्कार न्योछावर हैं।
राधा और खुद को एक मानने वाले, गोकुल की गोपियों को तंग करने वाले नंद बाबा के लाल, यशोदा के प्यारे कन्हैया का यह जन्मोत्सव इस बार कुछ विशेषताएं लिए रहा। जानकारों के अनुसार द्वापर युग के बाद यानी करीब 5057 साल बाद जन्माष्टमी पर ऐसा दुर्लभ संयोग आया है। ज्योतिषियों के मुताबिक इस बार जन्माष्टमी पर तिथि, वार, नक्षत्र व ग्रहों का अदभुत मेल हुआ है जैसा कि द्वापर युग में बना था। इससे पहले 1932 एवं 2000 में बुधवार को जन्माष्टमी पड़ी थी लेकिन उस समय तिथि और नक्षत्रों का मेल नहीं था। इस बार नक्षत्र, तिथि, लग्न, सभी एक साथ विद्यमान हैं। अष्टमी सूर्योदय से होने के कारण वैष्णव और शैव सम्प्रदाय दोनों ने एक ही दिन जन्माष्टमी मनाई। अन्यथा एक दिन आगे पीछे मनाई जाती रही है।
राधे और कृष्ण की आपसी बातों का भी कहीं कहीं उल्लेख मिल जाता है जैसे :
एक बार राधा ने कृष्ण से पूछा कि गुस्सा क्या है। इस पर कृष्ण ने कहा कि किसी की गलती की सजा खुद को देना।
दोस्ता और प्यार में क्या फर्क है। कृष्ण ने कहा कि प्यार सोना है और दोस्त हीरा। सोना टूटकर वापस बन सकता है लेकिन हीरा नहीं।
राधा ने कृष्णा से पूछा कि मैं कहां कहां हूं। कृष्ण ने कहा, मेरे दिल में, सांस में, जिगर में, धड़कन में, तन में, मन में, हर जगह…। फिर राधा ने पूछा कि मैं कहां नहीं हूं… तब श्रीकृष्ण ने कहा कि बस मेरी किस्मत में।
राधा ने एक बार फिर श्रीकृष्ण से पूछा कि आपने प्यार मुझसे किया लेकिन शादी रुक्मिणी से..। ऐसा क्यों। श्रीकृष्ण का जवाब था कि शादी में दो लोगों की जरूरत होती है। तुम ही बताओ राधा-कृष्ण में दूसरा कौन है।
शायद इसीलिए कहा जाता है कि श्रीकृष्ण इज ए कम्प्लीट मैन।
(समाचार में कवि कुमार विश्वास का कथन भी शामिल किया गया है)