मां मुझे टैगोर बना दो नाटक का भावपूर्ण मंचन
Udaipur. ‘‘.. और अब नही बनना मुझे टैगोर, मुझे एक शिक्षक बनना है। एक ऐसा शिक्षक जो उसकी तरह फाकाकशी और मुफ़लिसी का जीवन बसर कर रहे सैकड़ों बच्चों के आत्मविश्वास को मजबूत कर दे, तंगहाल बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करे। जिस प्रकार उसके शिक्षक ने हमेशा उसका हौसला बढ़ाया और भविष्य का टेगौर तक कह दिया। एक ऐसा शिक्षक जो दूसरों के जीवन को प्रकाशमय कर दे।’’
मन को भावुक और भीतर से हिला देने वाली ये मर्मस्पर्शी पंक्तियां ‘‘माँ! मुझे टैगोर बना दे’’ नाटक की है जिसका मंचन नादब्रह्म एवं डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्टे के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय नाट्य समारोह ‘रंगाजलि’ में दूसरे दिन शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में विद्याभवन ऑडिटोरियम में हुआ।
देश भर में इस नाटक के 299 मंचन कर चुके लक्की गुप्ता का यह 300 वां मंचन था। उन्होंने नाटक में अभिनय और बेहतरीन संवाद से बताया कि कमियां किसी होनहार का रास्ता नहीं रोक सकती। बस मन में संकल्प और दृढ़ इच्छा शक्ति होनी चाहिए। माँ मुझे टैगोर बना दो एक बच्चे की पढ़ाई करने व कविता लिखकर टैगोर बनने की संघर्ष यात्रा है। नाटक में सलीम अपने शिक्षक से प्रेरित होकर कविता लिखना चाहता है। एक दिन वो अपने दिल की बात शिक्षक को बताता है। तब वो उसे रबिन्द्र नाथ टैगोर की कविताओं की किताब ‘गीतांजलि’’ देते हैं।
सलीम उस किताब में लिखी कविताओं को पढ़ता है और उन्हें समझने की कोशिश करता है पर समझ नहीं पाता। इस बीच वो एक छोटी सी कविता लिखता है और उन्ही अध्यापक को जाकर सुनाता है तब कविता सुन वो हैरान हो जाते है कि छोटा सा बच्चा इतनी सुंदर कविता कैसे लिख सकता है और वो टैगोर की तरह कवि बन सकता है। उस दिन वो अपने जीवन लक्ष्य बनता है की उसे कवि टैगोर की तरह बनना है। मगर परिस्थितियां साथ नहीं देती। एक दिन उसके पिता की मृत्यु हो जाती है और मां की बीमारी की वजह से उसे घर का एक एक सामान बेचना पड़ता है।
जीवन के कठिन दौर में भी वो परिस्थितियों के खिलाफ लड़ता है और अपने अंदर के टैगोर को मरने नहीं देता। दिन में मजदूरी करके और शाम को पढ़ाई करके वो दसवीं कक्षा पूरे जिले में प्रथम स्थान प्राप्त करता है। इस तरह आगे बढ़ता है। उसे ये एहसास होता है कि एक अच्छा अध्यापक ही एक अच्छा टैगोर होता है।
नाटक के अंत में छात्र के संवाद ‘‘मैं समझ गया कि टैगोर किसे कहते हैं। पर अब मैं टैगोर नहीं अपने मास्टर साहब जैसा बनना चाहता हू जिनके पास ज्ञान का अथाह भंडार है पर वे टैगोर खुद नहीं बने और हम जैसे न जाने कितने बच्चों को टैगोर बनाया। मुझे तो बस अपने मास्टर साहब जैसा ही बनना है’ से दर्शकों की आंख डबडबा गई। इस नाटक का लेखन, निर्देशन व अभिनय लक्की गुप्ता ने ही किया है। नादब्रह्म रंग निर्देशक के शिवराज सोनवाल ने जम्मू के लक्की गुप्ता को आभार व धन्यवाद दिया।