स्वामी विवेकानन्द के जीवन से आत्मसात हुए विद्यार्थी
Udaipur. इंदौर स्थित शारदा मठ की प्रवाजिका मां अमित प्राणाजी ने कहा कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान से ही नही हैं वरन् मनुष्य को स्वयं में व्यवहारिक , सामाजिक ज्ञान, आध्यात्म एवं चिंतन की भी आवश्यकता हैं साथ ही साथ युवाओं को एकाग्रता की भी जरूरत है।
वे शिकागो धर्मसभा के 150 वें वर्ष पूर्ण होने पर स्वामी विवेकानन्द जयंती के तहत विश्वभर में हो रहे कार्यक्रमों की श्रृंखला में सुविवि के विधि महाविद्यालय सभागार में मुख्य अतिथि के रूप में स्वामी विवेकानन्द के चरित्र उनके आध्यात्म, चिंतन व एकाग्रता पर संबोधित कर रही थीं। उन्होंने स्वामीजी की एकाग्रता से जूडे कई प्रसंगों को सुनाते हुए विद्यार्थीयों से कहा कि अगर बचपन से ही एकाग्रता पर ध्यान दिया जाए तो कम समय में पढा़ई करके भी काफी ज्ञान अर्जित किया जा सकता हैं। स्वामीजी ने अपनी शिक्षा के अलावा भी संगीत, वाद्य यंत्र, दर्शन साहित्य, मनोविज्ञान, इतिहास के साथ भूगोल का भी पूर्ण ज्ञान अर्जित किया और ज्ञान को अर्जित कर उसे पूरे विश्व में बांटा।
माँ अमित प्राणाजी ने कहा कि यह संसार काजल की कोठरी के समान हैं जिसमें हर इसान कलंकित हो जाता हैं अन्यथा व्यवहार से हम कलंकित नही हैं। जिसमें सब कुछ करने का अहंकार आ जाये वह सही मायने में विवेकानन्द जी को पा सकता हैं। विधि महाविद्यालय अधिष्ठाता आनंद पालीवाल ने कहा कि पूरा विश्व इस जयन्ती को समारोह पूर्वक मना रहा हैं जिसका मुख्य कारण हैं स्वामी जी के विश्व बंधुत्व की भावना जिसकी आज के समय में खासी जरूरत हैं। उन्होनें विधि के विद्यार्थियों से कहा कि विधि का कार्य क्षेत्र ही सेवा रूपी हें जिसमें आगे चलकर विद्यार्थियों को समाज में न्याय को स्थापित करना हैं इसलिए यह जरूरी हैं कि स्वामी जी के जीवन से प्रेरणा लेते हुए समाज में अपने कार्या का निर्वहन करे। कार्यक्रम में रामकृष्ण सेवा न्यास की अध्यक्षा डॉ. मंजुला बोर्दिया, डॉ. चुण्डावत एवं विधि महाविद्यालय के छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।