कटाई के बाद तकनीकी पर कार्यशाला 23 से
Udaipur. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बढ़ती जनसंख्या व खाद्य सुरक्षा को लेकर खाद्य प्रसंस्करण की महती आवश्यकता है। 10-15 फीसदी फल-सब्जियां तथा 8 से 10 फीसदी अनाज उत्पाद खराब हो जाते हैं जिनकी अनुमानित कीमत 50 हजार करोड़ रुपए है।
यह जानकारी डॉ. एस. के. नंदा ने आज यहां पत्रकार वार्ता में दी। वे यहां फसलों की कटाई के उपरांत तकनीक पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 23 से 26 सितंबर तक सीटीएई में होने वाली 29 वीं कार्यशाला में भाग लेने आए हैं। इसमें देश भर के 37 केन्द्रों से वैज्ञानिक हिस्सा लेंगे जो गत दो वर्षों में अपने शोध के बारे में बताएंगे। साथ ही अगले दो वर्षों में क्या करने वाले हैं, इसकी भी जानकारी देंगे।
उन्हों ने बताया कि कार्यशाला में आठ तकनीकी सत्र होंगे। इनमें औद्योगिक फसलों, खाद्यान्नों , पशुधन उत्पा्दों, गुड़ आदि के प्रसंस्करण व मूल्य संवर्धन पर देश भर में हो रहे अनुसंधानों पर चर्चा होगी। एआईसीएआर के उपमहानिदेशक प्रो. एन. एस. राठौड़ ने बताया कि यह कृषि अभियांत्रिकी की सबसे बड़ी परियोजना है। इस कार्यशाला से ग्रामीण समृद्धि के नए तरीकों व तकनीकी जानकारी के लिए काफी सहायता मिल सकती है।
आयोजन सचिव डॉ. एन. के. जैन ने बताया कि कार्यशाला के मुख्य अतिथि एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. ओ. पी. गिल होंगे। अध्यक्षता डॉ. एन. एस. राठौड़ करेंगे। कार्यशाला में सहायक महानिदेशक डॉ. के. के. सिंह, लुधियाना से डॉ. एस. एन. झा आदि भी भाग लेंगे। उन्होंने बताया कि उदयपुर केन्द्र में लहसुन, अदरक, ग्वायरपाठा, मक्का आदि के प्रसंस्करण में सराहनीय कार्य हुआ है जिसे किसानों व उद्यमियों ने अपनाया भी है।