विद्यापीठ में पर्यावरणीय संसाधनों के प्रबंधन पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार शुरू
Udaipur. वैश्विक गर्मी यानी ग्लोबल वार्मिंग जिससे आज हम पीडि़त हैं, यह हम सभी के अत्याचारों का ही परिणाम है। सूर्य की किरणे आसानी से धरती के वातावरण में प्रविष्ट हो जाती हे। इससे पथ्वी का तापमान बढ़ता है, जो काफी घातक साबित होता है।
पुणे विश्वसविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. के बी पंवार ने बताया कि सूर्य की उर्जा जब पृथ्वी पर आती है तो उसकी वेवलेंथ कम हो जाती है। इससे पृथ्वी के वातावरण में कई ऐसी गैसें हैं, जैसे जलवाष्पस, कार्बन डाई ऑक्साइड, जो कि शॉर्ट लेंथ की किरणों के लिए पारदर्शी होती है।
वे राजस्थान ज्योग्राफिकल एसोसिएशन और जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के सहयोग से पर्यावरण संसाधनों के प्रबंधन एवं संरक्षण पर शुरू हुए तीन दिवसीय अंतरराश्टीय सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भौतिक विकास के प्रयास में संसाधन आधार का विनाश हुआ है। आर्थिक विकास एवं गहराते पर्यावरण संकट के मध्य तालमेल विष्व में स्थानीय, राष्ट्रीाय, अंतरराष्ट्रीिय सभी स्तरों पर चिंता का विषय है। आयोजन सचिव डॉ. सुनीता सिंह ने बताया कि पहले दिन दो तकनीकी के समानांतर सत्रों में 70 पत्रों का वाचन किया गया। इस दौरान विशिष्ट अतिथि दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो. विनोद तिवारी ने भी विचार व्याक्तर किए।
कृषि पैदावार में कमी के संकेत : राजस्थान ज्योग्रफिकल एसोसिएशन अध्यक्ष प्रो. बी. एल. वर्मा ने बताया कि वातवरण में लगातार बढ़ रही कार्बन डाईऑक्साईड की मात्रा से न केवल वैश्विक तापमान में वृद्धि ;ग्लोबलवार्मिग तथा स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां हो रही है, बल्कि फसलों की पैदावार कम होने से विश्व में खाद्यान्न संकट भी उभर रहा है।
पर्यावरण रक्षा और हमारा सामाजिक दायित्व : वहीं एसोसिएशन के संरक्षक प्रो. मोइनुद्दीन शेख ने बताया कि आज पर्यावरण संतुलन के दो बिंदु सहज रूप से प्रकट होते हैं। पहला प्राकृतिक औदार्य का उचित लाभ उठाया जाए एवं दूसरा प्रकृति में मनुष्य जनित प्रदूषण को यथासंभव कम किया जाए। इसके लिए भौतिकवादी विकास के दृष्टिकोण में परिवर्तन करना होगा। करीब पौने तीन सौ साल पहले यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुई इसके ठीक 100 वर्ष के अंदर ही पूरे विश्व की जनसंख्या दुगनी हो गई। जनसंख्या वृद्धि के साथ ही नई कृषि तकनीक एवं औद्योगिकरण के कारण लोगों के जीवन स्तर में बदलाव आया। मनुष्य के दैनिक जीवन की आवश्यकताएं बढ़ गई इनकी पूर्ति के लिए साधन जुटाएँ जाने लगे। विकास की गति तीव्र हो गई और इसका पैमाना हो गया अधिकाधिक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन इसने एक नई औद्योगिक संस्कृति को जन्म दिया।
पर्यावरण की अनदेखी मानव सभ्यता : कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने कहा कि आदिकाल से ही मानव जीवन मधुर, मानव, पर्यावरण संबंधों के कारण मानसिक विकास के पायदानों पर अग्रसर हुआ है। जनसंख्या वदिृध, संसाधनों पर दबाव, गिरते मानवीय मूल्य, स्वार्थपरता में तेजी आदि कारकों इस मधुर संबंध में विरोधाभासी स्थितियां उत्पन्न की है।वर्तमान में मनुश्य के समक्ष चुनौतियों में पर्यावरणीय समस्याएं प्रथम पंक्ति में खडी है।पर्यावरणीय घटकों का संरक्षण ओर उचित प्रबंधन लगभग हर एक गोश्ठी में ज्वलंत मुदृदे के रूप में पढे जाते है। सेमिनार में स्वागत आयोजन सचिव डॉ. सुनीता सिंह ने किया। संचालन डॉ. हिना खान ने किया। इस अवसर पर डॉ. मनोहरसिंह राणावत, डॉ. सुमन पामेचा, डॉ. ललित पांडे, डॉ. आरपी नारायणीवाल, डॉ. एलआर पटेल, डॉ. युवराजसिंह राठौड़, डॉ पंकज रावल व डॉ. नितिन चौधरी ने भी विचार व्यीक्तड किए। इस इवसर पर प्रो बीएल फडिया, प्रो एनएस राव, प्रो गिरिश नाथ माथुर, डॉ हेमशंकर दाधीच, डा संजीव राजपुरोहित आदि सहित देश विदेश से आए सैकडों विषय विशेषज्ञ उपस्थित थे।