Udaipur. सर्वऋतु विलास स्थित अन्तर्मना सभागार में श्रद्घालुओं को सम्बोधित करते हुए अन्तर्मना मुनि प्रसन्न सागर ने कहा कि अच्छे दिन कम होते जा रहे हैं। बचपन चला गया, हमारे हाथ में नहीं रहा, यौवन भी आया और चला गया, बुढा़पे ने दस्तक दे दी है। परन्तु जब व्यक्ति चलना प्रारम्भ कर देता है तो उसकी मंजिल निकट आ जाती है। चलने का मतलब यही है कि हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं।
शुक्रवार को बच्चों का अंकलिपि केवल ज्ञान संस्कार होगा, वे बच्चे भी सौभाग्यशाली होंगे जिनको संत द्वारा, संत के हाथों, स्वर्ण कलम से उनकी जिह्वा पर बीजाक्षर लिखा जाएगा। आचार्य उमाचन्द्रस्वामी ने पुरूषार्थ देशना ग्रन्थ के माध्यम से हम सबके जीवन को अपनी अमृत वाणी द्वारा सदुपदेश देते हुये आलोकित किया है। ग्रन्थ एक बहुत ही सुन्दर माध्यम है जिसे आचार्यो ने प्रभु की निकटता पाने को, अपने जीवन को संवारने का अवसर दिया हैं यदि किसी बुन्द को सागर तक जाना है तो कितनी ही बार मिटते, टूटते, बिखरते, पिटते हुये पंहुचती है। और अगर एक बार पंहुच जाती है तो वह बून्द स्वयं सागर बन जाती है। इसी तरह ग्रन्थों के माध्यम से हमारा जीवन भी सागर की तरह विशाल हृदय वाले ज्ञान के भंडार को पा सकता है।
मुनि ने कहा जिन्दगी में चार से किसी तरह की अपेक्षा मत रखना। इनके प्रति सम्मान की भावना रखते हुए कभी बैर मत करना और हमेशा उनके लिये मन में समरसता, आदर भाव बनाए रखना। उनसे कभी आमंत्रण-निमंत्रण की राह मत देखना। वे हैं माता पिता, गुरु, परमात्मा और मित्र। इन चारों के पास जाने के लिए किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं रखते हुए कभी भी बिना बुलाये ही चले जाना। माता पिता के घर जाना हो, मित्र के घर जाना हो, वहां कोई कार्य हो रहा हो तो बुलावे की प्रतीक्षा नहीं करें। गुरु के द्वार या परमात्मा के मंदिर में जाने के लिये भी कोई निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये। लेकिन आजकल ऐसा हो रहा है कि बिना बुलावा क्यों जाएं। आचार्य कहते है, पंचम काल में हर चीज घट रही है, उम्र कम हो रही है, बीमारियां हावी हो रही हैं। अच्छी चीजें कम हो रही हैं, बुराईयां बढ़ रही है।
मुनि ने बताया कि शब्दों को समझकर बोलना चाहिये। एक शब्द महाभारत करा सकता है। एक शब्द किसी को दुश्मन, किसी को मित्र बना सकता है। एक शब्द पाषाण को प्रतिमा बना सकता है तो एक शब्द मित्र से शत्रु बना देता है। शब्दों का चयन बोलने से पूर्व विवेक से करो। बोलना बुरा नहीं है, मगर जहां आवश्यक हो वही पर बोलो, जितनी जरूरत है उतना ही बोलो, जितना कम बोलोगे उतना ही सम्मान बढे़गा और अधिक बोलने वाले की कदर नहीं होती। अंतर्मना रजत वर्षायोग प्रमुख डॉ. मोहन नागदा ने आगामी दिवसों के कार्यक्रम की जानकारी देते हुये बताया कि मुनिश्री द्घारा श्रावकों की अन्तरंग समस्या का समाधान 19 से 30 अक्टूबर तक दोपहर 2 से 4 बजे तक किया जायेगा। इसके लिये पहले से समय निर्धारित कर आना होगा।