कला महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेमिनार
Udaipur. मुख्य वन संरक्षक के. के. गर्ग ने वन अधिकार अधिनियम पर कहा कि किसी भी कानून के निर्माण के साथ दो पक्ष उत्पन्न होते हैं। इस अधिनियम के सकारात्मक पक्ष ज्यादा हैं जिससे आदिवासियों को वन क्षेत्र में भूमि के स्वामित्व का हक मिल सका है।
वे सोमवार को मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के सामाजिक एवं मानविकीय महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग द्वारा भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के सहयोग से आदिवासी कानून 2006 : आदिवासी समाज के रूपान्तरण का साधन विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठीा को संबोधित कर रहे थे। आरम्भ में संयोजन सचिव प्रोफेसर पूरणमल यादव ने इस संगोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। प्रो. मोनिका नागौरी ने सभी का स्वागत करते हुए संगोष्ठी के उद्देश्यों पर भी राय दी।
मुख्य वक्ता सहायक वन संरक्षक डॉ. सतीश शर्मा ने आदिवासियों के परम्परागत नियमों एवं प्रयासों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए वन अधिकार कानून, 2006 के साथ तारतम्य जोड़ते हुए उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा कि हमें इस परम्परागत ज्ञान के आधार पर सरकार की आधुनिक नीतियों को जोड़कर और अधिक व्यावहारिक बनाया जा सकता हैं। विशिष्ट अतिथि प्रो. शरद श्रीवास्तव ने कहा कि इस कानून पर चर्चा करना समय की मांग है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में सुविवि कुलपति प्रो. आई. वी. त्रिवेदी ने आयोजकों को साधुवाद देते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय स्थापित है। उस क्षेत्र के बहुसंख्यक तबके के हकों के लिए बनाए गए कानून पर चर्चा के लिए हम इकट्ठे हुए हैं। इस अधिनियम की आदिवासियों को जानकारी देना सबसे ज्यादा जरूरी है। तभी वे हमारी जिम्मेदारी है कि हम सब इस समुदाय के लोगों को ऐसे कानूनों के प्रति जागरूक करें। अन्त में विभागध्यक्ष प्रोफेसर बलवीर सिंह ने कहा कि मात्र अधिनियम, कानून बनाने से ही आदिवासी समाज में रूपान्तरण को नहीं देखा जा सकता है, इनका लाभ तब तक अंतिम कड़ी तक तक नहीं पहुचता तब तक उनकी सार्थकता नहीं है। आजादी के आधा शतक से भी अधिक समय में ये लाभ आदिवासियों तक पूर्ण रूप से नहीं पहुंच पाए हैं। विभागाध्यक्ष ने सभी का आभार भी प्रकट किया।