हिन्दू धर्म की रक्षार्थ शहीद हुए गु़रू तेग बहादुर के शहीदी दिवस पर आयोजन
रक्तदान, प्रतिभा सम्मान, लंगर सेवा, शबद कीर्तन होंगे
udaipur. शहर का सम्पूर्ण सिख समाज पहली बार एक मंच पर आकर गुरु श्री तेगबहादुर : हिंद की चादर का 338 वां शहीद दिवस मनाएगा। इसमें पहली बार शहर के पांचों गुरुद्वारे शामिल होंगे। इसके तहत हिरणमगरी सेक्टर 4 स्थित गुरु नानक गर्ल्स कॉलेज में विविध कार्यक्रम होंगे। शनिवार से शुरू होने वाले दो दिवसीय आयोजन में बाहर से आ रहे जत्थे द्वारा भव्य कीर्तन होगा।
समाज के गुरूद्वारा सचखण्ड दरबार के अध्यक्ष तेजेन्द्रसिंह रोबिन ने आज यहां आयोजित प्रेस वार्ता में बताया कि खन्ना वाले तेजेन्द्रसिंह व करनाल वाले कश्मीरसिंह द्वारा भव्य कीर्तन किया जाएगा। शहीदी दिवस आयेाजन के दौरान देहरादून वाले बलविन्दरसिंह द्वारा कथावाचन किया जाएगा। उन्होनें बताया कि शनिवार को सांय साढ़े छह से रात्रि 11 बजे तक विविध आयेाजन होगें जिसमें देहरादून वाले अजमेरसिंह का जत्था, करनाल वाले कश्मीरसिंह का शबद कीर्तन होगा तथा देहरादून वाले बलविन्दरसिंह गुरूतेगबहादुर की जीवनी पर कथा के माध्यम प्रकाश डालेंगे। भोपाल से आने वाले अमृतसंचार का जत्था द्वारा अमृत संचार के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाएगी। कार्यक्रम के दौरान गुरू का अटूट लंगर व नाश्ता का आयेाजन रहेगा। रविवार प्रात:10 बजे से संाय 4 बजे तक भी विविध आयोजन होंगे। मुख्य कार्यक्रम के तहत जिसमें रविवार को सिक्ख समाज, गुरू तेग बहादुर हॉस्पीटल व रक्तदान-महादान ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में रक्तदान किया जाएगा। इसी दिन समाज के प्रतिभावान बच्चों को भी सम्मानित किया जाएगा। कार्यक्रम के दौरान अमृतसंचार का आयोजन किया जाएगा। उन्होनें उदयपुर के समस्त समाजजन से इस शहीदी दिवस कार्यक्रम में भाग लेने का आग्रह किया।
इतिहास : मनमोहनसिंह वासल एवं राजेन्द्र सिंह सोखी नें बताया कि गुरू तेग बहादुर ने हिन्दु धर्म की रक्षार्थ दिल्ली के चांदनी चौक में 24 नवंबर 1675 को सिर कटा दिया और आज वहीं स्थान गुरूद्वारा सीसगंज साहब के नाम से जाना जाता है। गुरू तेग बहादुर ने नदी किनारे दाह-संस्कार रोकने, पाठशालाओं को मदरसों में बदलना,जबरन कर वसूलना,औरंगजेब के उस फरमान धर्म परिवर्तन करो या मौत कबूलों में से मौत कबूल कर उपरोक्त गलत परम्पराओं व कुरीतियों को मिटाने के लिए आमादा रहे। उस समय धर्म परिवर्तन का एक झंझावत सा आ गया। मुगल साम्राज्य जोर जबरदस्ती की पराकाष्ठा पर उतर आया। धर्म के इस कुरूक्षेत्र से घबराकर कश्मीर पंडित सर्वप्रथम गुरू तेगबहादुर के समक्ष उपस्थित हो कर उन्हें सम्पूर्ण हिन्दु जगत पर हो रहे अत्याचार की व्यथा सुनाई एवं सुरक्षा की गुहार की।
परमजीतसिंह व देवेन्द्रसिंह ने बताया कि गुरू तेगबहादुर ने उन्हीं कश्मीरी पंडितो के हाथों संदेश पहुंचाया कि वह निर्दोष पर जुल्म करना बंद करें। यदि औरंगजेब गुरू तेगबहादुर का धर्म परिवर्तन कराएं तो कश्मीरी पंडित स्वंय ही धर्म स्वीकार कर लेंगे। इस पर औरंगजेब क्रोधित हो उठा और उसने गुरूजी को दिल्ली बुलवा लिया। उन्हें काफी प्रलोभन दिये और उसकी बात न मानने पर सिर काट लिये जाने तक की धमकी दी लेकिन गुरूजी ने तिलक व जनेऊ की रक्षार्थ ढाल बनते हुए अपना शीश औरंगजेब के समक्ष प्रस्तुत कर इतिहास में उसे बलिदान के रूप में प्रस्तुत किया। हिन्दु धर्म की रक्षार्थ एक विशाल पर्वत की भांति अडिग,अविचल और स्थिर रहने के कारण ही उन्हें हिन्द दी चादर के नाम से जाना गया।