विद्यापीठ में लेखांकन के मुद्दों पर जारी अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का समापन
Udaipur. लेखांकन के क्षेत्र में वर्तमान में हो रहे शोध कर्मों से हमें और आगे बढऩा होगा। प्रबंधन की नई तकनीकों आदि का विश्लेषण भी इस प्रकार से होना चाहिए कि हमें वित्तीय स्थितियों की सटीक जानकारियां समय रहते मिलत रहे।
ये विचार जानकारी जोबनेर एग्रीकल्चर विवि के कुलपति प्रो. एन. एस. राठौड़ ने राजस्थान विद्यापीठ में आयोजित लेखांकन के मुद्दे पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में व्य क्त् किए। प्रो. राठौड़ ने कहा कि विदेशों में वित्तीय स्थितियों से निबटने के लिए रियल टाइम अकाउंटिंग आदि पद्धतियों को अपनाया जाता है। इससे विद्यार्थियों को शोध कर्म में तो फायदा मिलता ही है, साथ ही आने वाली विकट परिस्थितियों से निबटने में भी आसानी रहती है।
पश्चिम का आर्थिक संकट वर्षों से चल रहा है, वहां के देशों में समय समय पर यह अलग रूपों में प्रकट होता रहा है। यह मंदी के रूप में कई बार आर्थिक संकट ले चुका है। मिल्टन फ्रीडमैन से लेकर आज तक के तमाम अर्थशास्त्रियों ने पूंजीवाद के ढांचे में ही इस अर्थव्यवस्था का विकल्प तलाशा है और अंतत: जनता का संकट कमोबेश ज्यों का त्यों बना हुआ है। सेमिनार में मुख्य वक्ता विक्रम यूनिवर्सिटी उज्जैन के पूर्व कुलपति प्रो. नागेश्वर राव ने बताया कि अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों और अध्यापकों के लिए यह नया प्रस्थान बिंदू है। संभव है कि पूंजीवादी अर्थशास्त्री इसमें भी कुछ खामियां ढूंढे, लेकिन निश्चित रूप से यह नए दिशा का संकेत देती है और इसमें कोई शक नहीं कि भारत के अर्थशास्त्र के अध्यापकों व विद्यार्थियों के लिए प्रेरक सामग्री उपलब्ध हो सके।
विशिष्ट अतिथि सरदार पटेल विवि आनंद के प्रो. पीके राठौड़, कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत, इंस्टीट्यूट ऑफ कोस्ट अकाउंटिंग इन इंडिया के प्रो. एल गुरूमूर्ति, डॉ. सीपी अग्रवाल ने विचार रखे। आयोजन सचिव डॉ. अनिता शुक्ला ने तीन दिवसीय कांफ्रंस की रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस अवसर पर डॉ. विजयसिंह पंवार, डॉ. ललित पांडे, प्रो. राजीव जैन, डॉ. सुमन पामेचा, डॉ. सरोज गर्ग, डॉ. गौरव गर्ग आदि उपस्थित थे। बताया गया कि तीन दिवसीय इस सेमिनार में 163 पत्रों का वाचन हुआ।