वीररस के कवि हरिओम पंवार से विशेष बातचीत
उदयपुर। वीर रस के कवि हरिओम पंवार कहा कि दिल्ली में बनी आप पार्टी की सरकार के मुखिया अरविन्द केजरीवाल यदि वास्तव में सादगी चाहते तो अपनी सरकार के शपथग्रहण पर 100 करोड़ का खर्चा नहीं कराते। सादगी तो वह होती जब उनके सहित छहों मंत्री राजभवन जाकर शपथ ले लेते।
रोटरी क्लब एलिट द्वारा आयोजित काव्य संध्या से पूर्व उदयपुर आए हरिओम पंवार ने विशेष भेंट में यह बात कहीं। उन्होनें कहा कि सरकार बनते ही दिल्ली में मंत्रियों व अधिकारियों की गाडिय़ों से लाल बत्ती हटवाकर सिर्फ तमाशा बनाया गया है। देश का इलेक्ट्रोनिक मीडिया इस अहंकार के साथ जीना चाहता है कि हम जो चाहते हैं वो कर सकते हैं और अरविन्द केजरीवाल के मामले में यह कर दिखाया। केजरीवाल को इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने मुख्यमंत्री बनवा दिया।
उन्होंने बताया कि समाचार पत्रों में यह प्रकाशित हुआ है कि दिल्ली के लुटियंस इलाके में अरविन्द केजरीवाल अपने के लिए बंगला चाहते थे जहां सिर्फ सुप्रीम कोर्ट व उच्चपदस्थ अधिकारियों के बगंले ही होते है, लेकिन केन्द्र सरकार ने स्पष्ट रूप से वहां बंगला देने से मना कर दिया। इसके बाद केजरीवाल ने अन्यत्र स्थान पर रहना तय किया। आप पार्टी के नेता अपनी बुद्धिमता का इस्तेकमाल कर जनता को नये तरीके से मूर्ख बना रहे हैं। यूथ को पाखंड व धोखे के नाम पर बरगलाया जा रहा है।
पंवार ने कहा कि यदि सादगी ही देखनी है तो गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर व त्रिपुरा के मुख्यमंत्री की देखें जो आज भी पूर्ण सादगी के साथ राज्य में शासन कर रहे हैं लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया का इस ओर कभी ध्यान गया ही नहीं। राडिया टैक्स मामले में देश के 17 बड़े पत्रकार जेल जाने वाले थे। उन्हीं ने मिलकर सरकार को उखाड़ फेंकने का निर्णय किया और उन्हीं के निर्णय की परिणिति है, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल।
उन्होंने कहा कि कवि सम्मेलन की दशा व दिशा में कुछ अवमूल्यन हुआ है लेकिन इसके बावजूद देश की दशा व दिशा से कहीं बेहतर है। हास्य के फूहड से कवि सम्मेलन को कोई रिश्ता नहीं है। कल शनिवार को मुबंई में आयोजित एक कवि समेलन में हास्य कलाकार सुनील पाल द्वारा मंच पर जूते पहनकर कर कविता पाठ करने पर मंच संचालक द्वारा जूते उतारेे क जाने की बात कहें जाने पर पाल ने कहा कि जूते के अलावा और क्या-क्या उतारूँ,इस पर मंच संचालक द्वारा जबरदस्ती उन्हें मंच से उतारना पड़ा। ऐसे फूहड़ का साहित्यिक मंच पर कोई स्थान नहीं है।