नई दिल्ली के राजपथ पर गणतन्त्र दिवस परेड
उदयपुर। नई दिल्ली के राजपथ पर गणतन्त्र दिवस परेड-2014 में निकलने वाली झांकियों में इस बार उदयपुर की कावड़ को प्रमुखता देते हुए राजस्थान की कावड़ कला की झांकी मुख्य आकर्षण रहेगी। इस आकर्षक झांकी का निर्माण दिल्ली में गणतंत्र दिवस रंगशाला में किया जा रहा है।
राजपथ पर निकाली जाने वाली इस झांकी के लिए राजस्थान की ‘‘कावड़ कला एवं तेरहताली नृत्य‘‘ के मॉडल का चयन किया है। राजस्थान ललित कला अकादमी के विनय शर्मा ने बताया कि झांकी की परिकल्पना एवं डिजाईन जयपुर के चित्रकार हरशिव शर्मा ने तैयार की है। शर्मा ने उदयपुर की ‘कावड़‘ को अपना विषय बनाया है।
झांकी के मुख्य भाग ट्रेटर पर राजस्थानी परिधान में सजी युवती को तेरहताली नृत्य प्रस्तुत करते हुए दर्शाया है। जो 8 फुट ऊँची फाइबर से बनी मूर्ती होंगी साथ ही आगे एवं साइड में रंगीन छोटी कावड़े दिखाई गई है। झांकी के मध्य भाग में (ट्रेलर) में 8 महिलाएं एवं 2 पुरूष कलाकार तेरहताली का सजीव प्रदर्शन करते दिखाई देंगे। झांकी के पिछले हिस्से में 9 फीट ऊँची कावड़ घूमते हुए दिखाई गई है। खिडक़ीनुमा कावड़ के विभिन्न पाटों में लोक देवताओं पर आधारित कथाऐं चित्रित होंगी। इसी प्रकार झांकी के दोनों ओर भी चित्रित कावड़ एवं कावड़ पर काम करते हुए कलाकारों की मूर्तियां फाइबर ग्लास में बनी दिखाई जायेगी।
भारत के सभी प्रान्त इस में अपनी डिजाइन एवं मॉडल रक्षा मंत्रालय में प्रस्तुत करते है। रक्षा मंत्रालय ने कुल तेंरह राज्यों की झांकी के मॉडल को ही स्वीकृति प्रदान की है जिसमें राजस्थान एक है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान की झांकी विगत तीन वर्षों से चयनित होता आ रहा है। गत वर्ष राजस्थान की ‘बूंदी चित्रशाला‘ को द्वितीय पुरस्कार मिला था।
क्यार होती है ‘कावड़‘
आम, अडूसा और सागवान की लकड़ी से बनी एक अलमारी नुमा आकृति को कावड़ कहा जाता है। दो हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी इस अनूठी कावड़ कला का उद्वव उज्जैन के विक्रमादित्य काल में होना बताया जाता है। कालान्तर में यह कला दक्षिण राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में लकड़ी का काम करने वाले कलाकारों ने अपना ली। कावड़ की विशेषता यह है कि इस अलमारी के कपाट परत दर परत खुलते जाते हैं और हर कपाट के खुलने के साथ ही उन पर अंकित चित्र कथाएं भी खुलती जाती है। रामायण, महाभारत और बाईबल के अलावा भगवान गणेश, महावीर जी, प्रभु यीशु, स्वामी विवेकानन्द, आदि शंकराचार्य, मुगल-दरबार, दुर्गादास राठौड, आचार्य महायज्ञ, दशामाता के साथ ही पंचतंत्र्, पंचकुला, सहित अनेक लोक प्रचलित दंत कथाओं पर कावडें बनाई जाती है। अब तो दहेज प्रथा, पोलियों, साक्षरता आदि कार्यक्रमों पर भी कावड़ बनती है।