विद्यापीठ में राजस्थान के इतिहास के आयाम पर संगोष्ठी आरंभ
उदयपुर। प्रख्यात इतिहासविद् प्रो. वी. के. वशिष्ठ ने कहा कि जरूरत है दवा, तकनीकी, धातु विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर गहनता से कार्य करने की। उन्होंने कहा कि वह इतिहास जो अंग्रेजों के समय से पहले व बाद लिखा गया उस इतिहास पर भी हमें मंथन करने की जरूरत है। उन्होंने राजस्थान इतिहास पर अब तक के लेखन की विवेचना करते हुए शोध छात्रों को आव्हान किया कि वे इतिहास के अनछुए पहलुओं पर शोध कार्य करें।
अवसर था गुरूवार जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विष्वविद्यालय के संघटक माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के इतिहास एवं संस्कृति विभाग की ओर से आयोजित दो दिवसीय ‘‘राजस्थान के इतिहास के आयाम’’ विषयक पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता विचार व्यक्त किए। प्रो. वशिष्ठ ने सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास के विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि राजस्थान के इतिहासकारों ने जनजाति एवं निम्न वर्ग के लोगेां के इतिहास पर महत्वपूर्ण शोध कार्य किए। संगोष्ठी निदेशक डॉ. नीलम कौशिक ने बताया कि मुख्य अतिथि कुलाधिपति प्रो. भवानीशंकर गर्ग ने कहा कि राजस्थान में उपलब्ध मूल शोध सामग्री के आधार पर भारतीय दृष्टिकोण से इतिहास लेखन की महत्ती आवष्यकता है। उन्होंने कहा कि इतिहास मात्र तिथि पत्रक, राज महाराजाओं की प्रशस्ति मात्र नहीं है बल्कि उस समय की घटित घटनाएं, स्थानीय परिस्थितियां, सामाजिक परिवेष, रहन सहन, संस्कृति इससे जुड़ी रही है। हमारे यहां आजादी के बाद इतिहास के स्त्रोतों की खोज एवं शोध का उल्लेखनीय कार्य होने के साथ ही इतिहास लेखन के अनेकानेक नये आयामों पर अनुसंधान हो रहा है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि हमें हमारे पारम्परिक ज्ञान को संरक्षण करने की जरूरत है। साथ ही बताया कि अतीत में जो कुछ घटित हुआ वह सारा इतिहास है अब इतिहास के अन्तर्गतम राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, ज्ञान विज्ञान, कृषि, आयुर्वेद, ज्योतिष, साहित्य कला, भूगोल एवं दर्शन आदि पर अधिक से अधिक शोध कार्य किये जोन की आवष्यकता है। संगोष्ठी की विशिष्ट अतिथि मानव संसाधन विकास मंत्रालय नई दिल्ली की सदस्य डॉ. रेणु पंत ने कहा कि राजस्थान का इतिहास हमारी गौरवमय धरोहर है जिसमें विविधता के साथ परम्पराओं और बहुरंगीय सांस्कृतिक विशेषताओं से ओतप्रोत यहां की कला एवं संस्कृति है। राजस्थान प्रचीन सभ्यताओं की जन्म स्थली है एवं यहां के पत्थर भी बोलते है। विशिष्टर अतिथि प्रख्यात इतिहासकार प्रो. के.एस. गुप्ता ने कहा कि राजस्थान इतिहासकारों के लिए स्वर्ग है। यहा अतुल सामग्री देखने को मिलती है जो भारत के शेष स्थानों पर नहीं मिलती। हमें सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास के अध्ययन के लिए इस सामग्री का उपयोग करने की महत्ती आवष्यकता है। साथ ही राजस्थान में परिवारों में जो व्यक्तिगत सामग्री है उसका संकलन भी बेहद जरूरी है।
इन इतिहासकारों का सम्मान : आयोजन सचिव डॉ. हेमेन्द्र चौधरी ने बताया कि समारोह में इतिहास लेखन में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए इतिहासविद् प्रो. के.एस. गुप्ता, प्रो. गिरीशनाथ माथुर एवं डॉ. देवीलाल पालीवाल को प्रषस्ति पत्र, शॉल एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
शोध पत्रिका विरासत का लोकार्पण : जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विष्वविद्यालय के इतिहास एवं संस्कृति विभाग की ओर से प्रकाशित एवं डॉ. नीलम कौशिक द्वारा सम्पादित वार्षिक शोध पत्रिका विरासत का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में अधिष्ठाता सुमन पामेचा ने अतिथियों का स्वागत किया। धन्यवाद डॉ. जीवनसिंह खरकवाल ने दिया। इस अवसर पर डॉ. मनोहर सिंह राणावत, प्रो. जे.सी. उपाध्याय, डॉ. ललित पाण्डे्य, डॉ. जीवन सिंह देवास, डॉ. सज्जन सिंह राणावत, डॉ. विजय सिंह, डॉ. चन्द्रषेखर शर्मा, डॉ. मीना गौड़, डॉ. उर्मिला शर्मा, डॉ. एल.एन. नन्दवाना ने अपने विचार व्यक्त किए।
तकनीकी सत्र
आयोजन सचिव डॉ. हेमेन्द्र चौधरी ने बताया कि सेमीनार के प्रथम दिन दो तकनीकी सत्रों के दो समानान्तर सत्रों में 45 पत्रों का वाचन किया गया।
समापन समारोह: आयोजन सचिव डॉ. हेमेन्द्र चौधरी ने बताया कि शुक्रवार दोपहर 01 बजे श्रमजीवी महाविद्यालय के सिल्वर जुबली हॉल में मुख्य अतिथि महापौर रजनी डांगी, विशिष्ट1 अतिथि भागवंत विश्व विद्यालय अजमेर के कुलपति प्रो. लोकेश शेखावत तथा अध्यक्षता कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत के आतिथ्य में होगा।