आचार्य तुलसी वरिष्ठ नागरिक संस्थान की ओर से समाधिमरण का स्वरूप विषयक कार्यशाला
उदयपुर। समाधि मरण में मनुष्य का मृत्यु पर शासन होता है जबकि अनिच्छापूर्वक मरण में मृत्यु मनुष्य पर शासन करती हे। इसमें पहले को पंडितमरण तथा दूसरे को बाल (अज्ञानी) मरण कहा गया है। जैन परम्परा में संलेखना या संथारा (मृत्युवरण) एक महत्वपूर्ण तथ्य है।
ये विचार मुख्य वक्ता के रूप में सुरेश सिसोदिया ने व्यक्त किए। वे श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से आचार्य तुलसी वरिष्ठ नागरिक संस्थान के तत्वावधान में रविवार को तेरापंथ भवन में समाधिमरण का स्वरूप विषयक आयोजित कार्यशाला को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि जैनागम ग्रंथों में समाधिमरण के दो प्रकार सागारी संथारा एवं सामान्य संथारा माने गए हैं। सागारी यानी ऐसी विपत्ति आ जाए जिसमें से बच निकलना संभव न हो यथा डूबना, आग में गिर जाना, हिंसक पशु या दुष्ट व्यक्ति के चंगुल में फंस जाना, ऐसे समय ग्रहण करने वाले को सागारी संथारा कहा जाता है। इसी प्रकार जब स्वाभाविक जरावस्था या असाध्य रोग के कारण वापस स्वस्थ होकर जीवित होने की आशा खत्म हो जाए तब जो देह की आसक्ति व शरीर पोषण के प्रयत्नों का त्याग किया जाता है, उसे सामान्य संथारा कहा जाता है।
सिसोदिया ने बताया कि समाधिमरण विधिपूर्वक किया जाता है। इसके पांच दोष भी हैं जिनसे बचना चाहिए। इनमें जीवन की आकांक्षा, मृत्यु की आकांक्षा, ऐहिक सुखों की आकांक्षा, पारलौकिक सुखों की आकांक्षा एवं इन्द्रिय विषयों के भोग की आकांक्षा शामिल हैं। यहां यह उल्लेख भी जरूरी है कि समाधिमरण न तो मरणाकांक्षा है और न ही आत्महत्या। आत्महत्या व्यक्ति क्रोध के वशीभूत होकर, सम्मान-हितों को गहरी चोट पहुंचने या जीवन से निराश होने पर करता है लेकिन ये सभी चित्त की सांवेगिक अवस्थाएं हैं जबकि समाधिमरण तो चित्त के समत्व की अवस्था है, इसलिए यह आत्महत्या नहीं की जा सकती। श्रावक या श्रमण दोनों के लिए समाधिमरण का महत्व समान है। जीवन की अंतिम स्थिति में आत्मा के कल्याण के लिए पंडित वरण करने में श्रावक-श्रमण के महत्व को अलग अलग नहीं किया जा सकता। मृत्यु से भयभीत नहीं होकर अनासक्तिपूर्वक समभाव से युक्त होकर देह का परित्याग कर मृत्यु का आलिंगन करना ही समाधिमरण है।
इससे पूर्व मंगलाचरण शशि चह्वाण एवं सरिता कोठारी ने किया। वरिष्ठ नागरिकों को चन्द्रप्रकाश पोरवाल ने पे्रक्षाध्यान के प्रयोग करवाए। स्वागत भाषण देते हुए सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी समारोह में वर्ष भर होने वाले कार्यक्रमों के क्रम में वरिष्ठ नागरिक संस्थान की ओर से यह कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला का उद्देश्य समाज के वरिष्ठजनों को आपस में मिलाना भी है।
पिछली प्रतियोगिता के विजेता श्रीमती आजाद तलेसरा, चन्द्रकांता वैद, पारसमल कोठारी एवं मिश्रीलाल दक को पारितोषिक प्रदान कर पुरस्कृत किया गया। संचालन पारसमल कोठारी ने किया वहीं आभार शांतिलाल सिंघवी ने जताया। अतिथि स्वागत की रस्म मंत्री अर्जुन खोखावत, सौभाग्यसिंह नाहर एवं छगनलाल बोहरा ने अदा की। माह जनवरी एवं फरवरी में जन्मदिन वाले कार्यशाला के प्रतिभागी वरिष्ठ नागरिकों को उपरणा ओढ़ा माल्यार्पण कर मोखमसिंह कोठारी, छगनलाल बोहरा, मिश्रीलाल दक, पारस कोठारी, श्रीमती आजाद तलेसरा, अर्जुन डांगी एवं शांतिलाल सिंघवी ने सम्मान किया। इस दौरान मनोरंजन सत्र का आयोजन भी किया गया जिसका संचालन कंचन सोनी ने किया। इसके तहत आध्यात्मिक एवं राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत स्पर्धाओं का आयोजन किया गया।