आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी वर्ष में आध्यात्मिक कार्यशाला
उदयपुर। साहित्यकार डॉ. देव कोठारी ने कहा कि विश्व में सबसे पहला और पुराना धर्म जैन धर्म है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता का जिन लोगों ने उत्खनन कराया वे बौद्ध या सनातन धर्म के थे। इन सभी ने अपने अपने अनुसार सभ्यता का उल्लेख किया। इसके विपरीत उस दौरान मिलने वाले अधिकांश प्रमाण जैन संस्कृति के हैं।
वे मुख्य वक्ता के रूप में सोमवार को श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से तेरापंथ भवन में आध्यात्मिक कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जैन धर्म का उदय कब हुआ, इस बारे में सभी भ्रांति में जी रहे हैं। जैन धर्म में यूं पढ़े लिखे विद्वान बहुत हैं लेकिन पुरातात्विक जानकारी दे सकें, ऐसे लोग हमारे पास नहीं हैं। वल्लभनगर के पास बालाथल गांव में अभी उत्खनन कराया गया। फिलहाल हम अवसर्पिणी काल में जी रहे हैं। पाषाण काल समाप्त हुआ इसके बाद कृषि युग शुरू हुआ। तब जैन धर्म की स्थापना हो चुकी थी। भगवान ऋषभदेव का आविर्भाव हुआ। ब्राह्मणी लिपि से देवनागरी लिपि का आविष्कार हुआ। मंदिरों का जीर्णोद्धार कर हम स्वयं उनकी प्राचीनता को खो रहे हैं। प्रयास ऐसे हों कि प्राचीनता अक्षुण्ण रहे।
उन्होंने कहा कि सृष्टि कभी नष्ट नहीं हो सकती। सिर्फ काल बदलता रहेगा। जैन धर्म जातिवाद में विश्वास नहीं करता। महावीर ने कहा था कि जन्म से कोई शूद्र नहीं होता। व्यक्ति सिर्फ कर्म से पहचाना जाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि सभी धर्मों के लोग जैन साधु बने हैं। इसी प्रकार छुआछूत में जैन धर्म ने कभी विश्वास नहीं किया। जैन व्यक्ति कभी किसी का मन दुखाने वाला काम नहीं करेगा। अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांतवाद आदि इसकी शक्ति हैं। बिहार का नाम बिहार इसीलिए पड़ा कि अधिकांश मुनि वहां विहार करते थे। कालांतर में विहार का बिहार हो गया। चाणक्य भी जैन धर्म के अनुयायी थे। उन्होंने अंत में दीक्षा भी ली थी।
इससे पूर्व मंगलाचरण शशि चह्वाण, लक्ष्मी कोठारी, नीता खोखावत, सीमा कच्छारा एवं सरिता कोठारी ने किया। कार्यशाला में महिलाओं को चन्द्रप्रकाश पोरवाल ने पे्रक्षाध्यान के प्रयोग करवाए।
स्वागत भाषण देते हुए सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी समारोह के तहत आध्यात्मिक कार्यशाला में महिलाएं खासी संख्या में उमड़ रही हैं। पारिवारिक कामकाज से निपटकर समाज के प्रति अपना कुछ समय निकालना सबसे बड़ा धर्म है। साथ ही समयबद्धता के लिए भी हमारी बहिनें बधाई की पात्र हैं। उन्होंने बताया कि जन्म शताब्दी वर्ष समारोह के तहत वर्ष भर आयोजन होंगे। साध्वी कनकश्रीजी का चातुर्मास इस वर्ष हमें मिला है। निश्चय ही उनके सान्निध्य में उदयपुर के श्रावकगण लाभान्वित होंगे। अगली कार्यशाला 27 मार्च को होगी। इसके अलावा होली मिलन समारोह के दिन पूरे दिन भर के कार्यक्रम होंगे। इसमें कवि सम्मेलन, काव्य संध्या, मनोरंजक स्पर्धाएं भी होंगे। उन्होंने बताया कि स्वागत द्वार एवं तुलसी आर्ट गैलरी का काम जल्द ही शुरू हो जाएगा। महाश्रमण सभागार एवं किचन का लोकार्पण जल्द ही होगा। रीढ़ की हड्डी के रूप में आचार्य तुलसी ने समाज को छह दशकों तक बांधे रखा, उस महामानव के लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके जन्म शताब्दी वर्ष में हम अधिक से अधिक समाज को समय दे सकें।
पिछली आध्यात्मिक प्रतियोगिता की विजेता कशिश पोरवाल, माधुरी पोरवाल, संगीता चपलोत, व्यंजन स्पर्धा की विजेता आजाद तलेसरा, संगीता तलेसरा, तारा कोठारी, चम्मच रेस की विजेता कामना पोरवाल, कान्ता खिमावत, संगीता कावडिय़ा, दरी पर दौड़ की विजेता धर्मिष्ठा मांडोत, डिम्पल सिंघटवाडिय़ा, चेतना नाहर को पुरस्कृत किया गया। फरवरी माह में जन्मदिन वाली महिलाओं अनिता बड़ालमिया, धर्मिष्ठा मांडोत, डॉ. शिल्पा तलेसरा, माधुरी पोरवाल, मंजू सिंघवी, पायल चपलोत को सम्मानित किया गया।
संचालन सोनल सिंघवी ने किया वहीं आभार सभा मंत्री अर्जुन खोखावत ने जताया। अतिथि स्वागत की रस्म मंत्री चन्द्रप्रकाश पोरवाल एवं मीडिया प्रभारी दीपक सिंघवी ने माल्यार्पण कर, उपरणा ओढ़ा साहित्य भेंटकर अदा की। इस दौरान मनोरंजन सत्र का आयोजन भी किया गया जिसका संचालन कंचन नगावत, प्रणिता तलेसरा, मंजू फत्तावत ने किया।