उदयपुर। विदेश नीति के क्षेत्र में सम्पूर्ण विश्व में विशिष्टा पहचान रखने वाले तथा प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक को विदेश नीति के मसलों पर सारगर्भित सलाह देने वाले, पूर्व विदेश सचिव पद्मभूषण जगत मेहता शिक्षाविद् डा. मोहनसिंह मेहता तथा मां विद्या देवी के एकमात्र सुपुत्र थे।
मेहता की प्रारंभिक शिक्षा विद्या भवन स्कूल में हुई। मेहता की उच्च शिक्षा इलाहबाद विश्वविद्यालय तथा कैम्ब्रिज में हुई। मेहता 1947 में विदेश सेवा में आए तथा विदेश नीति आयोजना विभाग के पहले प्रमुख बने। इससे पूर्व मेहता इलाहाबाद यूनिवरसिटी में प्राध्यापक तथा भारतीय नौसेना में भी रहे।
मेहता की 1960 में भारत चीन सीमा विवाद सुलझाने 1975 में युगाण्डा से निकाले गये भारतीयों के मुद्दा का निराकरण करने, 1976 में पाकिस्तान के साथ सामान्य संबंधो की बहाली, भारत पाकिस्तान के मध्य 1976 में सलाल बांध एवं 1977 में फरक्का बांध विवाद निपटाने तथा नेपाल के साथ 1978 में व्यापारिक रिश्तों संबंधी समझौतों में ऐतिहासिक भूमिका रही।
मेहता ने अपने विदेश सेवा काल में 50 से अधिक देशों के साथ भारत के बहुपक्षीय संबंधों पर नेतृत्व किया। कोमन वेल्थ प्रधानमंत्रीयों तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न सम्मेलनों व बैठको में मेहता की उपस्थिति व योगदान इतिहास का एक महŸवपूर्ण हिस्सा है। मेहता 1976 से 1979 के मध्य देश के विदेश सचिव रहे। वे टेक्सास विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर रहे।
मेहता पूरी उम्र सेवा मन्दिर से जुड़े रहे तथा लगभग 400 गांवों के समेकित विकास में प्रमुख भूमिका निभाई। 1985 से 94 तक वे सेवा मन्दिर के अध्यक्ष रहे तथा 1993 से 2000 तक विद्या भवन के अध्यक्ष रहे। 1985 से अब तक डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के प्रन्यासी भी रहे। मेहता झील संरक्षण समिति के अध्यक्ष थे तथा अंतिम सांस तक झीलों के लिये चिंता करते रहें। उनके परिवार में तीन पुत्र विक्रम मेहता, अजय मेहता तथा उदय मेहता एवं पुत्री विजया है। मेहता के निधन से विद्या भवन, सेवामन्दिर, डा. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट, झील संरक्षण समिति में शोक व्याप्त है।