विद्यापीठ में ‘प्रबन्ध शिक्षण का रूपान्तरण’ विषयक राष्ट्रीय सेमीनार
उदयपुर। आज युवाओं को इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली तैयार की जाए जिसमें उद्योग की आवश्येकता के अनुरूप प्रबंध के छात्रों को प्रशिक्षित किया जा सके। प्रत्येक राष्ट्र के लिए अलग-अलग प्रबंध शिक्षा उनकी आवश्याकताओं के अनुरूप निर्धारित की जानी चाहिए। साथ ही उनमें मूल्यों तथा मोरल वेल्यू का समावेश किया जाना चाहिए।
ये विचार जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक प्रबंध अध्ययन संस्थान की ओर से आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार भारत मे प्रबंध शिक्षण का रूपान्तरण विषयक पर मुख्य अतिथि मुम्बई के पूर्व आयकर कमिश्नठर प्रो. एच. सी. पारीख ने प्रबंध शिक्षण में रूपान्तरण की प्रासंगिता की आलोचनात्मक विश्लेनषण करते हुए कही।
मजबूत हो रिसर्च : प्रो. पारीख ने बताया कि उच्च शिक्षा में मैनेजमेंट रिसर्च कम प्रभावी है शोधार्थी ग्लोबल मार्केट के आधार पर रिसर्च को मजबूती दे।
सेमिनार चेयरमैन प्रो. एन. एस. राव ने बताया कि सेमीनार के मुख्य वक्ता महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्व विद्यालय अजमेर के प्रो. मनोज कुमार सिंह ने कहा कि आज के परिप्रेक्ष्य में भारतवर्ष में प्रबंध की स्थिति अच्छी नहीं है इसलिए इसमें आत्मचिंतन करने की आवश्य कता है। उन्होंने कहा कि युवाओं को गुणवत्तापूर्वक एवं मूल्यपरक शिक्षित करने व स्वरोजगार से जोड़ने की आवश्य कता है जो आगे चलकर अपने क्षेत्र में कामयाब हो सके। उन्होंने युवाओं से अधिक से अधिक सेवा क्षेत्र में अपना योगदान देना चाहिए। आज मैनेजमेंट युवाओं की बहुत कमी आ रही क्योंकि युवाओं का इस ओर रूझान कम होता जा रहा है। प्रबंध शिक्षण सस्थानों में कुशल शिक्षकों की आवश्यरकता है। अध्यक्षता कुलपति प्रो. शिव सिंह सारंगदेवोत ने कहा कि शिक्षा से मानव का व्यक्तित्व सम्पूर्ण विनम्र एवं संसार के लिए उपयोगी बनता है। सही शिक्षा से मानवीय गरिमा स्वाभिमान एवं विश्वए बंधुत्व में बढो़तरी होती है। अतः शिक्षा का उद्देश्यद है सत्य की खोज। इस खोज का केन्द्र अध्यापक होता है जो अपने विद्यार्थियों को शिक्षा के माध्यम से जीवन में व्यवहार एवं सच्चाई की शिक्षा देता है। आज की युवा को ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यवकता है जो उसके खोजी एवं सृजनशील मन को सबल बनाने के साथ साथ उसके सामने चुनौतिया प्रस्तुत करें।
विशिष्ट अतिथि सौराष्ट्र विष्वविद्यालय राजकोट गुजरात के प्रो. पी. एस. चौहान ने कहा कि हमारी भारतीय प्राचीन संस्कृति अलग है अमरीका और यूरोप की संस्कृति अलग है दोनों का सम्बंध भी अलग है। हमारी संस्कृति भावुक एवं मानवतावादी है जबकि उनका संस्कृति आधुनिक व मशीन बेस नवीन तकनीक है। मशीन बेस किसी भी समस्या का कोई समाधान नहीं कर सकती है। हमारी संस्कृति एवं मैनेजमेंट बहुत अधिक सक्षम है। इस अवसर पर प्रो. दक्षा गोहिल, प्रो. संजय बयानी, प्रो. एन.एस. राव, प्रो. करूण एस. सक्सेना, प्रो. सी.पी. अग्रवाल ने भी तकनीकी सत्रों में अपने विचार व्यक्त किए। सेमीनार का संचालन डॉ. हिना खान ने किया जबकि धन्यवाद डॉ. नीरू राठौड़ ने दिया।
तकनीकी सत्र : आयोजन सचिव डॉ. हिना खां एवं नीरू राठौड ने बताया कि मार्केटिंग मैनेजमेंट, ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट, फाइनेंस मैनेजमेंट, एज्यूकेशन इन इंडिया पर तीन समानान्तर तकनीकी सत्रों में कुल 83 पत्रों का वाचन किया गया।