अल्प प्रचलित फलों के व्यावसायिक दोहन हेतु मूल्य श्रृंखला परियोजना पर कार्यशाला
उदयपुर। केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान बीकानेर के पूर्व निदेशक डॉ. ओ. पी. पारीक ने कहा कि खाद्य पदार्थों मे गुणवत्ता पर ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे उपभोगकर्ता को प्रसंस्करित पदार्थों में अधिकतम पोषक तत्व मिल सके।
वे विश्व बैंक पोषित एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली द्वारा स्वीकृत एनएआईपी परियोजना ’अल्प प्रचलित फलों के व्यावसायिक दोहन हेतु मूल्य श्रृंखला’ की समापन कार्यशाला को मुख्यव अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने परियोजना का अधिकतम लाभ लेने के लिए फलों की समुचित तुडा़ई, भण्डारण, ग्रेडिंग, पल्प में फ्लेक की मात्रा एवं उचित मशीनों के विकास मे अनुसंधान कर्ताओं एवं उद्योगपतियों की सक्रिय भागीदारी बढा़ने पर जोर दिया। परियोजना में मुख्य रूप से सीताफल, बेर, आंवला एवं जामुन के तुडा़ई उपरान्त प्रबंधन एवं प्रसंस्कंरण के क्षेत्र में विभिन्न तकनीकों का विकास किया गया।
अध्यक्षता करते हुए एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. ओ. पी. गिल ने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सीताफल के प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन मे सराहनीय कार्य किया है परन्तु इसे वृहद स्तर पर अपनाने कि आवश्यकता है जिससे किसानों, उद्योगों, एनजीओ संस्थान के साथ ही उपभोक्ता को भी लाभ मिल सके उन्होने अपेक्षा की कि इस परियोजना के कार्य को ओर अधिक बढाने मे सभी का सहयोग अपेक्षित है जिससे इसका प्रभाव बडे़ स्तर पर पड़ सके।
अनुसंधान निदेशक डॉ .पी. एल. मालीवाल ने बताया कि इस परियोजना मे मुख्य रूप से सीताफल की प्रसंस्कपरण तकनीक को विकसित कर मूल्य श्रृंखला का विकास किया गया है तथा इस उपलब्धि द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर विष्वविद्यालय की पहचान बनी है। इस परियोजना में विकसित तकनीक को तीन विभिन्न प्रसंस्करण उद्योगों को एमओयू के माध्यम से हस्तांतरित भी किया गया है। उद्यान विज्ञान विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के विभागाध्यक्ष डा. आर. ए. कौशिक ने बताया कि जिला वन अधिकारी ओपी शर्मा ने उत्पाद के जैविक प्रमाणीकरण की बात कही। उद्योगपति नायक ने सीताफल प्रसंस्करण से तीन गुना अधिक लाभ प्राप्त करने एवं क्षेत्र के किसानों कालूराम, रत्नाराम एवं त्यागी ने परियोजना से मिली तकनीकी से अधिक लाभ प्राप्त करने के अनुभव बताए। संचालन डॉ. सुनील पारिक ने किया। धन्यवाद डॉ. एस के शर्मा, क्षेत्रिय अनुसंधान निदेशक ने किया।