आजीविका व पोषण सुरक्षा पर कृषि नवोन्मेषी परियोजना पर कार्यशाला
उदयपुर। किसी किसान की सब्जी् का उत्पारदन चार गुना हो गया तो किसी के क्षेत्र में सब्जीा का उत्पावदन नगण्य से 40 हजार रुपए बीघा तक पहुंच गया। यह सब संभव हो पाया है कृषि नवोन्मेाषी परियोजना से जो महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय के संरक्षण में जनजाति बहुल चार जिलों में समेकित कृषि पद्धति एवं प्रौद्योगिकी के मॉडलस् द्वारा संचालित की गई।
विश्व बैंक व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा वित्त पोषित इस परियोजना पर हुई कार्यशाला में बाहर से आए किसानों ने अपने अनुभव सुनाए। मूंगथला की प्रेसी गरासिया के अनुसार मक्का में उत्पादन 5 क्विंटल बीघा से बढ़कर 10 क्विंटल हो गया, बांसवाड़ा के प्रेमसिंह व बाबूलाल के अनुसार सब्जियों का उत्पादन पहले शून्यं था वहीं आज भिण्डी,, मिर्ची, टमाटर, गोभी, लौकी आदि से प्रति बीघा 40 हजार रुपए की आय हो रही है। खेरवाड़ा के देवीलाल ने बताया कि उन्नत सिंचाई पद्धति से जायद में मूंग की उन्नत खेती कर अपनी आय बढ़ाई है।
झाड़ोल के राम शर्मा ने बताया कि मक्का की उन्नत किस्म से उनका उत्पादन 8 से 10 क्विंटल प्रति बीघा मिला है। साथ ही बकरी पालन से उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ा है जिससे उनकी पारिवारिक आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। डूंगरपुर के कृषि विज्ञान केन्द्र प्रभारी ने बताया कि परियोजना के तहत इरोड (तमिलनाडु) से लाई गई हल्दी की व्यापक स्तर पर खेती फलोज-डूंगरपुर में की जा रही है जिससे क्षेत्र के किसानों 100 टन हल्दी माही हल्दी के नाम से उत्पादित की है एवं इसके मूल्य संवर्धन हेतु एक कम्पनी का निर्माण भी किया है।
मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. ओ. पी. गिल के कहा कि परियोजना से जुड़े किसानों के चेहरों पर खुशी है। वे अपने बच्चों को अच्छे विद्यालयों में भेज रहे हैं। मोबाइल एवं अच्छे वाहनों का प्रयोग कर रहे हैं एवं उनकी आय बढने से उनके घर में भी खुशहाली है यह हमारे लिये सबसे बडी उपलब्धि है। परियोजना के मुख्य अन्वेषक एवं प्रसार शिक्षा निदेशक प्रो. आई. जे. माथुर ने बताया कि परियोजना में कई नवाचार किये गये, इसमें प्रमुख है- सस्टेनेबिलिटी फण्ड। आज इस फण्ड में किसानों की जमा राशि 3.4 करोड़ से अधिक है। इस राशि का उपयेाग इन्हीं गांवों में 3-4 वर्षों में किया जाएगा।