अष्ठ दिवसीय मीठे प्रवचन के दूसरे दिन कहा आचार्य शान्तिसागर ने
उदयपुर। जीवन में ये बातें हमेशा याद रखना चाहिये। जब भी किसी सत्संग में जाओ अपने मेरूदण्ड को सीधा करके हाथ जोड़ करके बैठना, हाथ बांध कर नहीं। हाथ जोडऩा पुण्य की निशानी है। जो हाथ जोड़ता है वह शत्रु को भी मित्र बना सकता है और जो हाथ बांधे रखता है, वह मित्र को भी शत्रु बना लेता है। ये विचार आचार्य शान्तिसागर ने नगर निगम प्रांगण में आयोजित मीठे प्रवचन की श्रृंखला के दूसरे दिन उपस्थित श्रावकों के समक्ष व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि आज की सबसे बड़ी सस्ती चीज अगर कोई है तो वह है सलाह (राय) जो एक से मांगोंगे हजार देने वाले मिल जाएंगे और सबसे महंगी चीज अगर कोई है तो वह है सहयोग तुम हजार से मांगोगे जरूरी नहीं कि एक से भी मिल जाए। आज के समय में आपका सबसे अच्छा मित्र कोई है तो वह है आईना। उसके सामने आप हाथ जोडक़र खड़े रहोगे तो वह भी ऐसा ही करेगा, हंसोगे तो हंसता हुआ ही दिखाएगा और रोओगे तो रोता ही दिखाएगा। लेकिन आप अपने सच्चे कहलाने वाले मित्र के सामने चाहे हंसोगे या रोओगे वो इसका बिल्कुल ही विपरीत ही दिखाएगा। इसलिए मित्र बनाओ तो आईने जैसा बिल्कुल ही सच्चा।
आचार्यश्री ने कहा कि नारी का गहना है शर्म, हया, लाज और घूंघट। लेकिन कई लोग अक्सर पूछते हैं कि यह सारे बन्धन सिर्फ नारी पर ही क्यूं, पुरूषों पर क्यों नहीं। अगर हमें इसका तथ्य पता लगाना है तो हमें सफेद कपड़े पर लाल रंग में सबसे पहले नर लिखना होगा बाद में नारी लिखना होगा। अब हमने नर लिखा है इन अक्षरों के आगे और पीछे कुछ भी नहीं है न आगे मात्रा है ना ही पीछे मात्रा है एक दम से सपाट। लेकिन नारी शब्द में आगे पीछे मात्रा है। जो ना में सबसे पहली आ की मात्र है वो नारी के मर्यादा की प्रतीक है और री में ई की मात्रा में वह घूंघट (आवरण) का प्रतीक है। आजकल पश्चिमी संस्कृति के दौर में हम अपनी संस्कृति भूलते जा रहे हैं।
आचार्यश्री ने सत्संग की महिमा बताते हुए कहा कि सत्संग मन के मेल को धोने का साबुन है और प्रवचन उसे नितारने का जल है। जब हम गन्दे वस्त्र को साबुन से धो कर साफ कर लेते हैं, शरीर के मैल को पानी से नहाकर साफ कर लेते हैं तो फिर मन के मैल को साफ कैसे किया जाए। यह सत्संग ही एक मात्र ऐसा उपक्रम है जिससे मन का मैल साफ किया जा सकता है। अगर मन में शान्ति लानी है तो जीवन में बाधक कारणों को हटना पड़ेगा और साधक कारणों को अपनाना होगा। अगर ऐसा होगा तो शान्ति अपने आप आ जाएगी।
आचार्यश्री ने कहा कि सभी कहते हैं कि बन्द मुट्ठी लाख की और खुल जाए तो खाक की। यह गृहस्थ के लिए तो ठीक है लेकिन सन्तों के मामले में इसका उल्टा है। सन्त की बन्द मुट्ठी लाख की और खुल जाए को सवा लाख की। अगर संत अपनी मुट्ठी खोलकर किसी के सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देता है तो भक्त का तो कल्याण हो जाता है। व्यक्ति हर काम के हमेशा दूसरे के सहयोग पर निर्भर रहता है। अगर व्यक्ति जीव में गुरु शास्त्र का ही सहयोग ले लेते तो उसे जीवन में फिर किसी के सहयोग की आवश्यकता ही नहीं होती।
प्रवचन के पूर्व चित्र अनावरण के पुण्यार्जक मोहनलाल, रणजीत कुमार, हितेष कुमार कोठारी। मंगल दीप प्रज्वलन के कालूलाल चित्तौड़ा, श्रीमती सुशीलादेवी चित्तौड़ा परिवार, मंगल कलश के गणेशलाल बोहरा, गजेन्द्र कुमार नागदा परिवार, शास्त्र भेंट के केसुलाल, शान्तिलाल नागदा परिवार, गुरू पूजा के सुमतिलाल दुदावत परिवार थे। धर्मसभा में जैन महिला मण्डल की ओर से महिलाओं और बालिकाओं ने धार्मिक प्रस्तुतियां दी। धर्मसभा में आदिनाथ मानव कल्याण समिति कविता के संस्थापक सन्त सुधर्मसागर मुख्य रूप से उपस्थित हुए। इनके अलावा समाज के श्रेष्ठीजनों में सेठ शान्तिलाल नागदा, नाथूलाल खलूडिया, चन्दनलाल छाप्या, देवेन्द्र छाप्या, सुमतिलाल दुदावत, जनकराज सोनी, सुरेश पद्मावत, अशोक शाह, ललित देवड़ा, अंजना गंगवाल तथा कनकमाला छाप्या का धर्मसभा में खास सहयोग रहा। इसके अलावा शिवशेना के पदाधिकारियों ने आचार्य के समक्ष उपस्थित होकर गौ-रक्षा का संकल्प लिया।