अष्ठ दिवसीय मीठे प्रवचन के तीसरे दिन कहा आचार्य शान्तिसागर ने
उदयपुर। दान बंद मुट्ठी से जबकि ध्यान बंद दृष्टि से करना चाहिये। अगर आप अपनी बात सुनाना चाहते हैं तो पहले दूसरों की बात सुनना सीखो। मैं तो आपकी व्यथा सुनने और प्रभु की कथा सुनाने आया हूं क्योंकि व्यथा सुनने से आशीर्वाद मिलता है और कथा सुनने से प्रभु की शरण मिलती है।
ये विचार आचार्य शान्तिसागरजी महाराज ने नगर निगम प्रांगण में आयोजित मीठे प्रवचन की श्रृंखला के तीसरे दिन धर्मसभा में व्यक्त किये। आचार्य ने कहा कि जब आंखें भी आंसुओं को पनाह देना छोड़ देती है, ढलते सूर्य को देख कर लोग भी द्वार बन्द कर देते हैं, बुरे समय में साया भी साथ छोड़ देता है, ऐसे में प्रभु ही एक मात्र ऐसे निमित्त बचते हैं जिनके द्वारा हमेशा खुले रहते हैं। मनुष्य के चेहरे पर दो भाव हमेशा रहते हैं पहला मुस्कुराहट और दूसरा खामोशी। मनुष्य की मुस्कान समस्या को हल करने में सहायक होती है जबकि खामोशी समस्या से दूर भागने का सूचक होती है।
उन्होंने कि जरूरत तो एक फकीर की भी पूरी हो जाती है और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है। हमारे शरीर की महत्वपूर्ण पांच इन्द्रियां हैं। जो उनका दास बन कर जीता है वो चोर और बेईमानों की तरह हो जाता है जबकि जो इन पर विजयी प्राप्त कर इन्हें अपने वश में कर लेता है वह मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होकर प्रभु भक्ति में रम जाता है।
आचार्य ने कहा कि दुनिया में आपको रूलाने वाले तो सैंकड़ों मिल जाएंगे लेकिन हंसाने वाला कोई एक मिलेगा। इसलिए जब भी किसी से बात करो व्यंग्यात्मक भाषा में नहीं, ऐसी भाषा मत बोलो जिससे सामने वाले के दिल पर ठेस पहुंचे। हमेशा मीठा बोलकर सामने वाले का दिल जीतने का प्रयास करना चाहिये। सोचलो, अगर सामने वाला भी आपको आपकी ही भाषा में जवाब दे देता है तो आप पर क्या बीतेगी।
आचार्यश्री ने कहा कि कभी अंग्रेजी बोलते समय गलती हो जाए तो दुख और शर्म महसूस मत करना, लेकिन जब कभी हिन्दी बोलने में गलती से भी गलती हो जाए तो दुख और शर्म दोनों करना क्योंकि हिन्दी हमारी मातृ भाषा है। अंग्रेजी हमारी मातृ भाषा नहीं है। वैसे भी अंग्रेजी बोलने से कोई विद्वान नहीं बन जाता क्योंकि विदेशों में तो सडक़ पर झाड़ू निकालने वाला भी अंग्रेजी में ही बात करता है। हमें अपनी मातृ भाषा पर गर्व करना चाहिये, इसमें तो शब्दों का भण्डार है। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति तो भोग का सन्देश देती है जबकि भारतीय संस्कृति योग का सन्देश देती है। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिये।
तीसरे दिन की धर्मसभा के श्रेष्ठीजन और पुण्यार्जक चम्पालाल- भगवतीलाल भोजावत, महावीर मावावत, ऋषभ जैन, अनिल जिपरिया, सेठ शान्तिलाल नागदा, नाथूलाल खलूडिया, चन्दनलाल छाप्या, देवेन्द्र छाप्या, सुमतिलाल दुदावत, जनकराज सोनी, सुरेश पद्मावत, अशोक शाह आदि थे। धर्मसभा का आगाज मंगलाचरण से हुआ। इस दौरान विभिन्न धार्मिक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी हुई। धर्मसभा के मुख्य अतिथि डीवाईएसपी गोवर्धन लाल तथा विशिष्ठ अतिथि सीआई धानमण्डी राजेन्द्रसिंह जैन थे। दोनों पुलिस अधिकारियों का आचार्य के सानिध्य में अभिनन्दन किया गया।