एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा।।
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि।।
चित्तौड़गढ़। मुरारी बापू ने कहा कि इस कलि काल में छः चीजें योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत और पूजा है जो सब नहीं कर पाते हैं। इनमें कुछ दुर्लभ है तो कुछ दुर्गम भी। मीरा ने भी छह बातों में से कुछ कुछ अपने जीवन में करी थी परन्तु मीरा ने कृश्ण नाम सुमिरन गाया।
उन्होंने मंगलवार को मीरा की नगरी चित्तौड़ स्थित चित्रकूट धाम (इंदिरा गांधी स्टेडियम) आयोजित रामकथा के दूसरे दिन व्यासपीठ से हजारों की जन मेदिनी के सामने अपने भाव व्यक्त किये। मुरारी बापू ने कहा कि मीरा की अगर समग्र भक्ति को देखना है तो भगवान कृश्ण से कहों कि पांच मिनिट हमें मीरा बना दे। तभी कुछ मीरा के बारें में पता लगेगा। मीरा भगवान श्रीकृश्ण की भक्ति का नर्तन है, गायन है, कीर्तन है और मीरा श्रीकृश्ण का अश्रु है। मैं इतना ही कहूंगा कि मीरा वियोगिनी है। सूखे षब्दों की तलाष में कही हम मीरा के आंसू ना भूल जाये। कृश्ण जैसा विष्व में ना तो पहले हुआ है और ना ही होगा। उन्होने कहा कि राधा कृश्ण की आंख है और मीरा कृश्ण के आंसू है। उन्होने कहा कि राम को जानो, कृश्ण को जानो, मूल को जानो। इंसान सिर्फ सत्य के बारें में जानने में ही अपना जीवन व्यतीत कर देते है और सत्य हमें प्राप्त ही नही होता है। यह उदार आयोजन है मूल तत्व को पहचानने का।
अनमोल वचन
– कथा कही ना जाए, कथा करी भी जाए।
– नम्रता का दंभ ज्यादा टिकता भी नही है।
– अति वाद कभी नही करना चाहिए एवं अतिवादी के साथ भी नही रहना चाहिए।
– सहन शक्ति उसे कहते है जो अतिवाद में न जाए।
– सतगुरू अकेला चतुर हो तो सावधान रहना लेकिन सदगुरू चतुर के साथ सुजान हो तो उसका संग मत छोडना।
– सुन्दरता स्वीकार्य है परन्तु साथ साथ सुजान भी हो।
– मीरा एक सरिता है जो कृश्ण सागर में मिलती है।
– जो दिखता है वह दरवाजा है और जो देख रहा है वही मंजिल है।
– सदगुरू दृष्टि बदलता है।
– गुरु मंत्र भी है और तत्व भी है।
– उदास आदमी परमात्मा को अच्छा नही लगता है।
– साधना को जीवन से बिलग न समझे, जीवन ही साधना है।
– प्रभु नाम का आश्रय जरूर करे।
गुरु कुंभकार की तरह : जीवन में सत्कार और निन्दा दोनो है, सुख भी है और दुख भी है। चैतन्य की ठोकर से ब्रह्माण्ड चलता है। जड जड है लेकिन उसे चेतन ही गतिषील कर सकता है। मीरा कहती है कि मेरा गुरू चतुर भी है और सुजान भी है। परमात्मा का नाम प्रणय रूप है। त्रेता युग में भगवान राम ने जो जो भी किया है वह आज कलियुग में उनका नाम कर रहा है। भगवान का नाम आज कुमति को सुमति में बदल रहा है। निर्गुण एवं सगुण परमात्मा की चर्चा में प्रभु का नाम ही श्रेश्ठ है। आज के युग में प्रभु का नाम ही सर्वोपरि है। गुरू कुंभकार की तरह होता है।
विविध संस्कृतियों का संगम : मुरारी बापू की रामकथा में राजस्थान सहित गुजरात, महाराष्ट्रै, मध्यप्रदेश सहित देश के अन्य षहरों, हिस्सों से आये श्रद्धालु यहां आनंद रस लूट रहे है। वही जिले के देहात से आता जन सैलाब भी कथा सागर में समाकर संस्कृतियों का मेल करा रहा है। कही ठेट देहात की बोली कानों मे गूंज रही है तो कही गुजराती, मराठी व मेवाती प्रभु प्रसंगों की चर्चा का जरिया बनी हुई है।
चारों ओर राम का रेला : चित्तौड़ में चल रही मुरारी बापू की रामकथा के दूसरे दिन मंगलवार को श्रोताओं की आस्था में ओर प्रगाढ़ता दिखी। पाण्डाल, भोजनषाला, सडके एवं चौराहे चहुं ओर राम राम जपते श्रोताओं की टोलियां आ जा रही थी। कही विश्राम, कही भोजन तो कही कीर्तन में डूबे श्रोता आनंदोत्सव का आभास करा रहे हैे। चित्तौड ही नही आस पास के गांव में भी राम का रेला दिखाई देने लगा है। कथा से पूर्व गांव गांव से लोगों के पहुंचने को लेकर अच्छा खासा उत्साह देखा जा रहा है। दूर दराज से बसों में एवं अन्य वाहनों से भी लोग हजारों की संख्या में चित्रकूटधाम पहुंच रहे हैं।