बेटी जन्मे तो उत्सव मनाओ
व्यासपीठ से रामकथा के तीसरे दिन बापू ने किया आह्वान
चित्तौड़गढ़। परिवार में जब बेटी का जन्म हो तो बडा उत्सव समझो। बेटे के जन्म के समय जो उत्सव करते हो उससे तीन गुना उत्सव बेटी के जन्म पर करो। मैं व्यासपीठ के माध्यम से आह्वान करता हूं कि कन्याओं का सम्मान होना चाहिए। कन्या शक्ति, विद्या, श्रद्धा, क्षमा का रूप है, उसका स्वागत करना चाहिए। कन्या तीन कुल को तारती है। जहां नारी का सम्मान होता है वहां देवताओं का वास होता है।
मुरारी बापू ने कहा कि कन्या जन्म से राष्ट्र की संपत्ति, विभूति व ऐश्वर्य बढता है। स्त्री में सात विभूति होती है। घर में बेटी आई तो समझों की सात विभूतियां प्रकट हुई है। एक ओर मीरा की मौजूदगी, दूसरी तरफ राम के जन्म का इंतजार और परम गुरु के साक्षात्कार में भगवत चर्चा, चित्तौड़ में संत कृपा सनातन संस्थान की ओर से आयोजित रामकथा की आनंद त्रिवेणी में दूर-दूर से आए भक्तगण रामकथा के आनंद में सरोबार है। वे लौकिक जीवन के सुक्ष्म चमत्कारी शब्द भावों से रूबरू हो रहे है। वही मीरा के चरणों में खुद को समर्पित कर आच्छादित है। मौका है व्यासपीठ से मुरारी बापू के आशीर्वचन सुनने का।
तीसरे दिन बापू ने व्यासपीठ से अपने उदबोधन में कहा कि रामकथा सर्व धर्म उदार बज्म है। शालीनता की व्याख्या बुद्धि से नहीं आंखों से होती है। मीरा का सीधा संपर्क बुद्धि से नही हद्य से हो पाया है। बुद्धि की एक सीमा होती है। मंजिल की हमें परवाह नही हमें तो मोहब्बत चाहिए। भक्ति कभी मुक्ति नही मांगती है। मोक्ष प्राप्त करे वह मीरा नही है। मीरा तो हमेशा रहनी चाहिए। मीरा को हर पहलू से हर कोने से देखना होगा। दिल की आंखों से दर्शन करना होगा।
साधु की संगति : मीरा के जीवन में सात अध्याय है और उनमें साधु संगति एक अध्याय है। गोस्वामीजी साधु संगति को पहली भक्ति कहते है। जिसने साध लिया वो साधु है। साधु में गणवेश की नही गुणवेश की जरूरत होती है। गुरू सर्वभौम्य है और साधु को किसी एक फ्रेम में बंद नही किया जाना चाहिए। साधु प्रभावित नही करता है बल्कि वह प्रकाशित करता है और प्रकाशित करने के बाद समाज को विकसित किया जाए। साधु किसी का दिल नही तोड़ता है। व्रत टूटे तो कोई बात नहीं लेकिन ध्यान रखे कि किसी का दिल ना टूटे। साधू पूरी जिन्दगी काटने का नही, साधने का काम करता है।
भक्ति के अवतार : मीरा भक्ति का एक अवतार है। भक्ति गायेगी और नर्तन करेगी इसलिए मीरा ने भक्ति की। भक्ति के जल के बिना ज्ञान अधूरा है। भक्ति का पहला अवतार वेद की ऋचा है। भक्ति सगुण साकार मांगती है। रामचरितमानस की चौपाईयां भक्ति का अवतार है और जो भी धर्म ग्रंथ गाया जाए, वह भक्ति का प्रथम अवतार हैं।
गंगा भक्ति का दूसरा अवतार है और विश्व में हमारा परिचय और गौरव भी गंगा ही है। भक्ति का तीसरा अवतार मॉं भगवती जानकी है। भक्ति के मूल रूप को संशोधित कर समाज के सामने रखने की आवश्यीकता है। मां शबरी भक्ति का चौथा अवतार है और ब्रज की गोपियां भक्ति का पांचवा अवतार है। पहले धर्म को पकडो़ और फिर धीरे धीरे धर्म की संकीर्णता को छोडों। किसी भी चीज को पकडने के बाद ही किसी को छोडा़ जा सकता है। पहले धर्म को जगाओं और फिर धीरे धीरे धर्म की कट्टरता छोडों। धर्म संशोधन मांग रहा है और हमें पुरानी सोच को संशोधित करना ही पडे़गा। हम संकीर्ण होते जा रहे है और यह मूर्खता के अतिरिक्त कुछ भी नही है।
युवाओं से आह्वान : सुनना बडी़ कला है और यह भी एक प्रकार की भक्ति है। खोज होनी चाहिए कि कथा में आते हैं तब क्या होते है और जब कथा से निकलते है तब क्या हो जाते है। युवा वर्ग से आह्वान करते हुए बापू ने कहा कि आप मुझे नौ दिन दो, मैं तुम्हे नवजीवन दूंगा।
मंदिर में तू है तो मस्जिद में कौन : बापू ने ईश्वर की सर्वत्र विद्यमानता के भाव को प्रकट करते हुए कहा कि ‘अगर तू मंदिर में है तो मस्जिद में कौन, अगर तू तस्वीरह के एक दाने में है तो दाने-दाने में कौन‘ कहते हुए आगे भजन का सुर छेडा़। अपने मन की मैं जानूं और तुम्हारे मन की राम और फिर अलौकिक हुए माहौल में बापू ने कथा प्रवाह के मध्य राजस्थानी धरा की प्रशंसा करते हुए ‘धरती धोरा री’ गीत गाया। बापू ने कहा कि चित्तौड़गढ़ केवल भूमि का टुकडा़ या छोटा भूखण्ड ही नही है बल्कि यह तो मानवीय चित्त है।
कौमी एकता का संदेश : व्यासपीठ पर बुधवार को गंगा जमुनी तहजीब की संस्कृति दिखी। शहर के मुस्लिम समुदाय के अंजुमन मिल्लते इस्लामिया संस्थान के सदर अब्दुल गनी शेख, हाजी मोहम्मद इस्माइल, असरा वेलफेयर सोसायटी के मौलाना मोहम्मद सिदृीकी नूरी, गुलाम जिलानी आदि ने व्यासपीठ के समक्ष आकर मुरारी बापू का शॉल ओढा़कर इस्तकबाल किया। बापू ने उन्हे बधाई व शॉल प्रदान किया।