अष्ट दिवसीय मीठे प्रवचन के सातवें दिन कहा आचार्य शान्तिसागर ने
उदयपुर। अगर आपको जीवन में लाभ कमाना है तो दूसरों का भला करना सीखें क्योंकि जो व्यक्ति दूसरों का भला करता है उसके फलस्वरूप उसे लाभ ही मिलता है। इस बात को प्रमाणित करने के लिए आप लाभ शब्द को उल्टा करके लिखिये भला शब्द हो जाएगा।
लाभ और भला दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है, एक को प्राप्त करने के लिए दूसरे को त्याग त्यागना ही पड़ता है। लाभ में स्वार्थ छिपा है तो भला शब्द में त्याग की भावना है। उक्त विचार आचार्य शान्तिसागर जी महाराज ने नगर निगम प्रांगण में आयोजित मीठे प्रवचन की श्रृंखला के सातवें दिन उपस्थित श्रावकों के समक्ष व्यक्त किये।
आचार्य ने कहा कि आज हर व्यक्ति किसी चमत्कार की उम्मीद पहले करता है। जहां नमस्कार होता है वहां चमत्कार होता ही है, लेकिन लोगों ने आज कल नमस्कार करना ही छोड़ दिया है तो चमत्कार कहां से होगा। आज के दौर में मां-बाप की बेटा नहीं सुनता, भाई-भाई की नहीं सुनता, पति पत्नी की नहीं सुनता, मालिक नौकर की नहीं सुनता ऐसे में सैंकड़ों लोग एक ही पाण्डाल में बैठकर सन्त- गुरू की वाणी सुनते हैं यह क्या किसी चमत्कार से कम है। चमत्कार साधना से, भक्ति और भजन से होता है। कुदरत ने जो व्यवस्थाएं दी है कभी- कभी तो मनुष्य उससे भी चुनौति देने लगता है। लेकिन कुदरत की व्यवस्थाएं जो है उसी की बदौलत ही सारा संसार बसा है।
आज कल कई लोग स्वयं की संस्कृति को छोडक़र पाश्चात्य संस्कृति की ओर भाग रहे हैं जबकि पाश्चात्य संस्कृति तो खोखली है। हमारी संस्कृति में रिश्ते हैं उसमें रास्ते हैं, हमारे पास प्रभु भक्ति सर्वोपरी है उसके पास काम-वासना, हमारे पास सम्बन्ध है उसके पास अनुबन्धन है, हमारे पास साधना है उसके पास साधन है, हमारे पास योग है उसके पास भोग है। भोग तो साधन की ओर से ले जाता है जबकि योग साधना की ओर ले जाता है। साधन मौत की ओर ले जाता है जबकि साधना मोक्ष की ओर ले जाती है। हमेशा अच्छे की तलाश मत करो, खुद ही अच्छे बन जाओ, सब कुछ अच्छा लगने लगेगा।
आचार्यश्री ने कहा कि एक मच्छर के काटने से अगर व्यक्ति बीमार पड़ जाता है तो एक सन्त के प्रवचन से व्यक्ति निखर क्यूं नहीं जाता। रावण को दुनिया में सभी बुरा मानते हैं, इतना बुरा कि उसका नाम तक रखना कोई पसन्द नहीं करता। जबकि रावण तो भक्तिवान, विद्वान था। उसके दस शीश थे और बीस आंखें थी। रावण की अच्छी बात थी तो वह यह कि उसके बीस आंखें होते हुए भी उसकी दृष्टि एक थी। बीस आंखों के होते हुए भी उसकी कुदृष्टि थी सिर्फ सीता माता पर। लेकिन आज के मनुष्य के शीश भी एक है, आंखें भी दो है, लेकिन उसकी दृष्टियां अनगिनत है। हम हर साल दशहरे पर रावण को जलाते हैं, लेकिन रावण को जलाने का हक सिर्फ राम को है। जो आज दशहरे पर रावण को जलाते हैं, वह दो मिनिट भी सोचें कि क्या वह राम है, राम का अंश मात्र भी उनमें हैं। हकीकत में तो आज के युग में रावण ही रावण को जला रहा है।
भक्ति राम ने भी की, भक्ति रावण ने भी की। लेकिन राम की भक्ति वरदान बनी और राम भगवान श्री राम बन गये क्योंकि उनकी भक्ति के साथ धर्म का दीपक जलता था। लेकिन रावण की भक्ति स्वयं के लिए विनाशकारी बनी क्योंकि उसकी भक्ति के साथ अहंकार का दीपक जलता था। अहंकारी रावण ने कभी शीश झुकाना नहीं सीखा। जिसका शीश झुकता है, उसे आशीष मिलता है और जिसे आशीष मिलता है उसे ईश ईश्वर जरूर मिलते हैं।
सातवें दिन की धर्मसभा के पुण्यार्जक भैरूलाल, रोशनलाल, ललित कुमार देवड़ा, राजेन्द्र कुमार कोठारी, चम्पालाल जोधावत, जयन्तिलाल डागरिया थे। इसके अलावा मुख्य अतिथि क्षेत्रीय रेलवे अधिकारी हफूलसिंह चौधरी, उदयपुर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार अर्जुनलाल मीणा, शहर जिला भाजपा अध्यक्ष दिनेश भट्ट थे। समाज के श्रेष्ठीजनों में सेठ शान्तिलाल नागदा, नाथूलाल खलूडिया, चन्दनलाल छाप्या, देवेन्द्र छाप्या, सुमतिलाल दुदावत, जनकराज सोनी, सुरेश पद्मावत आदि थे। सभा के प्रारम्भ में राजेश शर्मा एण्ड पार्टी द्वारा संगीतमय मंगलाचरण पेश किया गया। महिला मण्डल की ओर से भक्ति नृत्यों की आकर्षक प्रस्तुतियां दी गई।
मीठे प्रवचनों का आज अन्तिम दिन
समाज के परम संरक्षक सेठ शान्तिलाल नागदा ने बताया कि मीठे प्रवचन की श्रृंखला का रविवार को समापन होगा। रविवारीय अवकाश होने के कारण श्रावकों की संख्या बढऩे की सम्भावनाओं को देखते हुए नगर निगम पाण्डाल में विशेष व्यवस्था की गई है।