रामकथा का विराम आज, उमड़ा जनसैलाब
चित्तौड़गढ़। मीरा की धरा चित्तौड में चल रही मुरारी बापू की रामकथा के आठवंे दिन व्यासपीठ से मानस मीरा को आगे बढ़ाते हुए मुरारी बापू ने भक्ति के अवतार मीरा के दर्षन से जीवन के तत्वों की चर्चा करते हुए कहा कि राजस्थान की धरा की तीन अनमोल चेतना-चेतक, चित्तौड और मीरा है। चेतक चंचल चित्त है, चित्तौड़गढ़ स्थित चित्त है और मीरा इन दोनों का सम्यक सेतुबंध है।
बापू ने कहा कि इस कलि काल में नौ चीजों से प्रभु की भक्ति की जा सकती है। यह नौ चीजे योग, जग्य, जप, तप, व्रत, पूजा, राम नाम सुमिरन, राम नाम गायन और राम नाम श्रवण इनके अतिरिक्त अन्य कोई साधन नही है। प्रथम छह साधन में श्रम मात्र है। कहीं भी विश्राम नहीं है। ऋषि-मुनियों ने कहा कि बिना श्रम के विश्राम को महसूस नही किया जा सकता है और जब थक जाओगे तभी मूल में जाओगे। सभी साधन वृक्ष है और जब वृक्ष होंगे तो फल अवष्य होंगे। राम का स्मरण करो, स्मृति में रखों, गाने का मन हो तो गाओं और सुनते रहो यही सरल उपाय है। इस कलिकाल में अन्य कोई साधन इतना सुलभ नही है जितना राम नाम है। आदमी का चिन्तन रोज नया होना चाहिए। षास्त्र का रोज नया पट होता है। व्यक्ति के साथ ही दर्शन व चिंतन भी नया होना चाहिए। समय के साथ लोगों को संशोधित होते रहना चाहिए।
तंदुरस्ती के लिए उपवास अच्छी बात : चित्रकूट धाम (इंदिरा गांधी स्टेडियम) में व्यासपीठ से बापू ने कहा कि धर्म आदमी को पुष्टन करे कमजोर नहीं। जितनी आवश्यहकता हो, उतना ही भोजन करना एक उपवास है। अन्न स्वयं भगवान है और सम्यक भोजन के पास बैठना उपवास है। जो खाने योग्य हो वही खाना चाहिए क्योंकि सम्यक भोजन उपवास है। शरीर धर्म साधन है और सम्यक सात्विक भोजन उपवास है। पात्र में जो आये, स्वाद के साथ खाना चाहिए और कल वही स्वाद दोबारा ना मिले तो नाराज भी नहीं होना चाहिए। जो व्रत आदमी को गंभीर बना दे, वह ठीक नहीं है।
मीरा सम्यक चेतना : गुरु परंपरा में प्रेम व्रत, मौन व्रत और अकारण अश्रु व्रत बताए गए हैं। मीरा की प्रेम भरी चेतना सम्यक चेतना है। सूफी संतों ने बुद्ध पुरुष के चरण में समस्त प्रकार के समर्पण को शहादत कहा है और व्यासपीठ के प्रति समर्पण भी शहादत है। मीरा के पदों में उसके समर्पण का पता लगता है। आत्म निवेदन भक्ति का चरम शिखर है। मीरा नर्तन करती है, कीर्तन करती है तो चचंल और मीरा स्थिर है अतः मीरा सम्यक सेतुबंध है। समग्र रूप से समर्पण भक्ति मार्ग की शहादत है, मीरा प्रेम व अध्यात्म मार्ग की शहीदी है। साधना में, भजन में आंखों का बहुत महत्व होता है। शिश्य श्रद्धा दान करता है और गुरु दिल दान करता है।
अपना हाथ जगन्नाथ : हमारा भविष्य हमारे हाथ में होता है और सभी कुछ हमारे हाथ की विधि पर निर्भर होता है। आज दुनिया उदासी या घृणा नहीं बल्कि प्रेम चाहती है। हमें किसी की निंदा या किसी से र्स्पद्धा नही करनी चाहिए बल्कि अपना कर्म करना चाहिए। किसी की निन्दा ना करें यही सबसे बड़ी पूजा है। दर्द अनुभूति का शब्द है और प्रेम की पूजा ही सत्य है।
कलियुग में प्रेम योग के सिवाय दूसरा कोई साधन नही है। वर्तमान में प्रेम योग से एक दूसरे से जुड़े रहे यही जमाने की मांग है। सत्य, प्रेम, करूणा कभी भी नही बदलते है, कभी भी नही बिखरते है क्योंकि जो बिखर जाता है उसे फेंक दिया जाता है। जो प्रिय लगे वही प्रभु का नाम है। बदला लेना तप नहीं है बल्कि बलिदान देना तप है। भरोसा नही छोडना और मुष्किल को भी सह लेना कलियुग में तप के समान है। बापू ने बताया कि दफ्तर को मंदिर मत बनाओ कोई बात नहीं लेकिन मंदिर को तो कम से कम दुकान नहीं बनाना चाहिए।
रामजन्म एवं रामचरितमानस का प्राकट्य रामनवमी : राम एवं राम चरित मानस का प्राकटय रामनवमी के दिन हुआ है। रामचरित मानस का एक एक शब्द परम विशेषता रखता है। रामकथा से व्यक्ति में दैहिक, दृश्टि, दिल, दिमाग, दैव्य तथा दिव्य बल आता है।
राम कथा विराम आज : मीरा की नगरी चित्तौड में 31 अप्रैल से चल रही नौ दिवसीय अभूतपूर्व रामकथा का विराम मंगलवार को होगा। चैत्रीय नवरात्री के एकम से षुरू हुई रामकथा राम नवमी को विराम होगी।