आखिरी दिन छलके आंसू, डबोक एयरपोर्ट से महुआ रवाना
चित्तौड़गढ़। मीरा की नगरी चित्तौड़ में हो रही नौ दिवसीय मुरारी बापू की रामकथामानस मीरा का मंगलवार को समापन हो गया। आयोजन की शालीनता, उमड़े जनज्वार और कथा में रस वर्षा के अनंत-अपूर्व प्रवाह से उत्साहित मुरारी बापू ने मानस की इस कथा को मीरा के चरणों में व इकतारा को समर्पित किया।
चित्रकूट धाम के पाण्डाल में रामकथा के आखिरी दिन श्रोताओं की तादाद इतनी थी कि कथा की शुरुआत के नियत समय से पूर्व ही पूरा पाण्डाल खचाखच भर चुका था। आखिरी दिन अपूर्व जनसैलाब उमड़ पडा तथा विदाई की वेला में हजारों श्रद्धालु भावों से भर उठे, नयनों से आंसू ढलक रहे थे। मुरारी बापू ने व्यासपीठ से जनमानस, समाज, देश और पूरे पृथ्वी के जीवों के कल्याण की कामना की तथा सबको सन्मति दे भगवान कहकर प्रभु से प्रार्थना की। उन्होंने एक शेर फरमाकर कथा का समापन किया कि आंखों में महफूज रखना सितारों को, अब दूर तलक सिर्फ रात होगी… मुसाफिर तुम भी हो मुसाफिर हम भी है किसी ना किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी।
आपस में गले लग दी विदाई : नौ दिनों तक मानस मीरा की चर्चा और रामकथा का साथ श्रवण करते – करते श्रोताओं में परस्पर प्रेम जाग गया। चित्रकुट धाम के पाण्डाल में श्रोता कथा की समाप्ति पर भरे नेत्रों से परस्पर क्षमा प्रार्थना करते हुए एक दूसरे को गले लग विदाई देते रहे। रामकथा के आखिरी दिन चित्रकुट धाम के पाण्डाल में बैठे हजारों श्रोताओं को व्यासपीठ से सम्बोधित करते हुए बापू ने गुरु की महत्ता बताते हुए कहा कि गुरु का संकेत साकेत धाम से कम नहीं है। हरि नाम के मजबूत बंधन के आगे सभी लौकिक बंधन ढ़ीले पड़ जाते हैं। जो सदगुरु की खोज में निकलता है उसे बुद्ध पुरुष अवश्यि मिलता है। हरि को हद्य में रखों और संत के चरणों में शीश रखो। बापू ने कहा कि प्रयास छूट जाए और प्रसाद मिल जाए तो आदमी स्वयं को हल्का महसूस करता है। उन्होनें बताया कि मुश्किल में कभी महक का तो कभी मूल्य का पता नही चलता है। बापू ने कहा कि कलियुग में राम नाम लेने से ही भवसागर का सुख मिल जाता है, क्योंकि आज के युग में प्रभु नाम ही सर्वोपरि है।
रामायण इतिहास नहीं : मुरारी बापू ने मानस का प्रसंग देते हुए कहा कि रामचरित मानस एक संहिता के भंवर की तरह है और जिसमें तरंगे विलख विलख, विषिश्ट व्याख्या भी अलग अलग प्रसंग के साथ रामचरित मानस में उल्लेखित है। इस भंवर में आनंद भी है जिससे निकलना मुमकिन नहीं है। मानस में एन्ट्री तो है लेकिन एक्सिट नहीं है। रामकथा सरल लगती है पर यह वास्तव में सरल नही है। रामायण को इतिहास मत समझों, यह तो भूल भुलैया है।
रामकथा की पूर्णाहुति के मौके पर बापू ने राम जानकी विवाह के साथ ही अयोध्या काण्ड, अरण्य काण्ड, किष्किन्धा काण्ड, सुन्दर काण्ड, लंका काण्ड और उत्तर काण्ड के प्रसंगों को दर्शाया। उन्होंने बताया कि रामचरितमानस में एक-एक शब्द परम विशेषता रखता है। बापू ने कहा कि इंसान के हद्य को जो साफ करे वह साधू है। साधु लौकिकता एवं मान्यता को छोड़ता है, जिन्होंने महापुरुषों को ठीक से साध लिया उन्हे गुरू का दर्शन होता है।
जानकी भक्ति है तो धनुष अहंकार का प्रतीक : बापू ने कहा कि अभिमान में भक्ति नहीं मिलती है। जानकी भक्ति और धनुष अहंकार का प्रतीक है। सीता विवाह प्रसंग का वर्णन करते हुए बताया कि शिव धनुष (पिनाकपाणि) जब टूटा तो उसने स्वयं को प्रभु के चरणों में पाया। अहंकार के टूटने पर ही भक्ति मिलती है और गुरू के सुमिरन के बिना अहंकार नही टूटता है। बापू ने कहा कि उठो, जागों और लक्ष्य को प्राप्त करो, यही उपनिषद का मूल सूत्र है। प्रेम सर्मपण का स्वभाव है और यह किसी पर दबाव नहीं डालता है।
मतदान की अपील : व्यासपीठ से बापू ने आह्वान किया कि लोकषाही में चुनाव एक पर्व और धर्म होता है। सत्संग से जो विवेक प्राप्त हुआ है उसके आधार पर हमें नागरिक धर्म का पालन अवश्यै करना चाहिए।
लौटे बापू, श्रद्धालु भी : मुरारी बापू कथा समाप्ति के बाद कुछ विश्राम के पश्चा्त महुआ के लिए रवाना हो गए। गुजरात, महाराष्ट्री, मध्यप्रदेश व राजस्थान के अन्य जिलों से आये श्रद्धालुओं के लौटने का सिलसिला भी शुरू हो गया है।
मैं प्रसन्न हूं : रामकथा के आखिरी दिन मुरारी बापू ने व्यासपीठ से अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि मीरा के धाम में रामकथा से मैं आनंदित हूं। यह मानस मीरा एक है और दूसरी मीरा की जन्मस्थली मेड़ता में होगी।
एक झलक और आशीष मिल जाए : रामकथा के आखिरी दिन हर कोई बापू की एक झलक पाने और उनसे आषीश लेने को आतुर था। चित्रकुट धाम के पाण्डाल में जनसमुदाय का एक रेला सा चल रहा था। पाण्डाल से सड़क तक, सड़क से लेकर दिल तक, दिल से लेकर नैत्रों तक सब कुछ आस्था से ओत प्रोत था। हर कोई भरे नैत्रों से अश्रु धारा बहाते हुए बापू के प्रति अपने आस्था के भाव को प्रकट कर रहा था। चारों और आस्था का उद्भव, अश्रु भरा प्रेम, हर कोई भाव विहल जैसे बापू चित्रकुटधाम के पाण्डाल को छोड़कर ना जाए, बापू मीरा की नगरी से ना जाए, बापू मेरी आंखों से ओझल ना हो जाए। असंख्य, अद्भुत जन सैलाब भावुक हो उठा, जैसे अपना कोई बिछड़ रहा हो। जैसे ब्रज से कृश्ण जुदा हो रहे हो, जैसे राम वनवास जा रहे हो। आत्मा को बेधती करूणामय स्थिति। हर कोई चुप। आंखों से सब कुछ कह देना चाहता है जैसे आंखे कलम और अश्रु स्याही हो और लिख रहे हो बापू मत जाओं, मत जाओ। बापू कहते रहे खुश रहो, खुश रहो।