विज्ञान और धर्म में मित्रता विषयक आयोजित आध्यात्मिक प्रशिक्षण कार्यशाला
उदयपुर। अगर आप क्षमा सीख लेते हैं तो कई तरह की बीमारियां समाप्त हो जाएंगी। अध्यात्म का सबसे पहला बिन्दू ही दया है। अगर आपने किसी को रुपए दिए तो वसूल तो करें लेकिन उसके प्रति मन में बैर भाव मत रखें। आचार्य महाप्रज्ञ की किताब में यह लिखा है कि रोग क्षमा न करने के कारण होते हैं। जब भी आपको कोई रोग हो तो विचार करें कि आपको किसे क्षमा करने की आवश्यकता है। कहा भी गया है कि क्षमा वीरस्य भूषणम्। शारीरिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए कायोत्सर्ग जरूरी है। यही मुनिजनों ने भी कहा है।
ये विचार भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर पारसमल अग्रवाल ने व्यक्त किए। वे मंगलवार को श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से तेरापंथ भवन में विज्ञान और धर्म में मित्रता विषयक आयोजित आध्यात्मिक प्रशिक्षण कार्यशाला को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने विज्ञान की बातों को धर्म से जोड़ते हुए कहा कि यह विश्व जगत बहुत ही सूक्ष्म है। इतना सूक्ष्म जिसकी परिकल्पना या तो विज्ञान में भी भौतिक विज्ञान और या फिर धर्म ने ही की है। आत्मा कहां है? अगर इसका जवाब आज के बच्चों से पूछा जाए तो शायद वे हंस पड़ेंगे लेकिन अगर इसी प्रश्न को विज्ञान की भाषा में उनसे पूछा जाए कि तीस हजार रुपए तोले के सोने को एक रुपए में जितना आए, उतना खरीदकर विश्व की जनसंख्या यानी 7 अरब लोगों में बराबर बांट दो तो वो गणितीय विधा से उसे बांटेगा तो प्रत्येक के हिस्से 15 करोड़ एटम आएंगे।
उन्होंने कहा कि सोडियम का जो पीला प्रकाश आता है वह प्रोटोन से 55 करोड़ गुना हल्का होता है। इससे भी हल्का और सूक्ष्म रेडियो की फ्रीक्वेंसी करीब 50 लाख गुना सूक्ष्म होती है। यानी सूक्ष्मता समझ में आनी चाहिए। जिस तरह विदेश में बैठा कोई भी व्यक्ति आपसे मोबाइल पर कनेक्ट हो जाता है। कैसे? वह एक सेकंड के सातवें हिस्से में आपसे बात करने के लिए तैयार होता है। वह भी तब जब ठीक उसी से बात करता है जिससे उसे करनी होती है। यह एक बहुत बड़ी व्यवस्था है। अगर एक कांच का गï्लास उपर से गिरकर टूटता है तो उसके कितने ही टुकड़े कितने ही अलग अलग शेप में होते हैं। कोई तिकोना तो कोई चार कोने से, छोटा और बड़ा लेकिन यह सब विज्ञान के हिसाब से फिक्स है। कितनी ऊंचाई से गिरने पर उसके कितने टुकड़े, किस किस शेप में होंगे, यह सब भौतिकी को पता है। मीडिया प्रभारी दीपक सिंघवी ने अतिथि परिचय देते हुए बताया कि प्रो. अग्रवाल काफी वर्षों से अमेरिका में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में पढ़ा चुके हैं। वर्ष 2010 में वे उदयपुर आए।
सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि अगली कार्यशाला 13 मई को होगी। इसमें आदर्श अभिभावक कैसे बन सकते हैं? पर महिलाओं को अपने विचार व्यक्त करेंगी। इससे पूर्व परिवार के साथ कैसे रहें विषयक भाषण प्रतियोगिता में बसंत कंठालिया ने सहिष्णुता और सहयोग की भावना से परिवार को एकजुट रखने की सलाह दी वहीं प्रतिभा इंटोदिया ने समाज में व्यवस्था, समझौता, सामंजस्य को जरूरी बताया। शकुंतला डागलिया ने जहां परिवार के साथ रहने में त्याग, सहनशीलता को महती जरूरत बताया वहीं संगीता चपलोत ने सामंजस्य को जरूरी बताते हुए क्रोध एवं कलह से दूर रहने के सुझाव दिए। पुष्पा नांदरेचा ने परिवार की परिभाषा बताते हुए प से पालन पोषण, रि से रीति रिवाज, वा से वार्तालाप एवं र से रहना साथ साथ की सारगर्भित बात कही। निर्मला दुग्गड़ ने खुद जीयो और दूसरों को भी जीने दो का ध्येय वाक्य बताते हुए कहा कि परिवार में भाषा का सोच समझकर प्रयोग करें। उग्र नहीं हों तथा सहनशीलता, छोटे बड़े के साथ पे्रमपूर्वक रहें।
शताब्दी गीत से कार्यक्रम का आगाज शशि चह्वाण, मंजू फत्तावत, सोनल सिंघवी, मंजू सिंघवी एवं लाडजी कंठालिया ने किया। पिछली आध्यात्मिक प्रतियोगिता के तहत होली मिलन समारोह में आयोजित स्पर्धा की विजेता प्रतिभा इंटोदिया, कशिश पोरवाल एवं बसंत कंठालिया को 30 में से 30 अंक प्राप्त करने पर पुरस्कृत किया गया। अप्रेल में जन्मदिन वाली महिलाओं अनिला इंटोदिया, नीता खोखावत, पुष्पा कंठालिया, सरोज सोनी, शशि मेहता, सीमा पोरवाल, शुचिता पोरवाल, सुशीला मांडोत एवं मंजू सिंघवी को महिला मंडल की मंत्री दीपिका मारू, सोनल सिंघवी एवं प्रणिता तलेसरा ने उपरणा ओढ़ाकर सम्मानित किया। होली मिलन समारोह की सभी प्रतिभागियों शुचिता पोरवाल, केसर तोतावत, आजाद तलेसरा एंड ग्रुप, किरण पोखरना, बसंत कंठालिया, संगीता चपलोत, संगीता कावडिय़ा, सरोज सोनी को भी पुरस्कृत किया गया।
संगीता पोरवाल ने पे्रक्षाध्यान के माध्यम से भय को दूर करने के संदर्भ में अभय की अनुपे्रक्षा के प्रयोग करवाए। संचालन सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने किया वहीं आभार प्रणिता तलेसरा ने जताया। अतिथि स्वागत की रस्म संरक्षक शांतिलाल सिंघवी एवं मीडिया प्रभारी दीपक सिंघवी ने माल्यार्पण कर, उपरणा ओढ़ा साहित्य भेंटकर अदा की।