विश्व पुस्तक दिवस पर हुई संगोष्ठी
उदयपुर। लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आर. पी. सनाढ्य ने कहा कि नई शिक्षा नीतियों के चुनौतीपूर्ण दस्तावेज उनमें पुस्तकालयों को भी शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना तकनीकी, दूर संचार शिक्षा तक पाठ्यक्रम में आ गये हैं लेकिन पुस्तकालय, शिक्षा का कही भी महत्व केवल शिक्षा संस्थाओं में ही होता है। पुस्तकालय शिक्षा केन्द्रों के हदय स्थल होते हैं।
वे जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वाविद्यालय के संघटक महाविद्यालय में विश्वन पुस्तक दिवस पर बुधवार को आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्हों ने कहा कि यह किसी पाठ्यक्रम में देखने को नहीं आया है जबकि शिक्षण संस्थानों को खोलने हेतु सबसे पहले पुस्तकालय का उल्लेख होता है। तत्पश्चात खेल मैदान व प्रयोगशालाओं का जिक्र होता है। शिक्षको के लिए पुस्तकलय षिक्षण इसलिए भी जरूरी है कि षिक्षकों केा पुस्तकालय व्यवस्थापन नियम, उपनियम, सूचिकरण, ग्रंथालय वर्गीकरण तथा संदर्भ मानसिक स्वास्थ्य से बौद्धिक समृद्धि पाने से है। अध्यक्ष्ता करतेे हुए डॉ. सरोज गर्ग ने बताया कि मनु स्मृति में भी पुस्तकालय व्यवस्था के लिए सर्वप्रथम निर्देष दिए गए है। डॉ. एस. आर. रंगनाथन ने भारत में स्कूल ऑफ लाईब्रेरी साईंस की स्थापना की थी। संगोष्ठी में पुस्तकालय अध्यक्ष बलवंतसिंह चौहान, डॉ. भूरालाल श्रीमाली, डॉ. हरीश चौबीसा, डॉ. हरीश मेनारिया, घनष्याम सिंह भीण्डर, रामसिंह राणावत ने भी विचार व्यक्त किए।