उदयपुर। श्रमण संघीय साध्वी डॅा. सुभाषा ने कहा कि शरीर वृद्ध होता है आत्मा नहीं। वृद्ध वह कहलाता है जिसने जीवन में नया सीखना बंद कर दिया है।
वे आज महाराणा प्रताप वरिष्ठ नागरिक संस्थान की ओर से विज्ञान समिति में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रही थी। उन्होनें कहा कि संत की दृष्टि में माता,पिता व गुरू तीनों मातृ स्वरूप है। विश्व सिर्फ आपसी रिश्तों एंव परस्पर सहयोग की भावना के आधार पर चल रहा है। जिसे बनाये रखना हम सभी का कर्तव्य है। सभी सहयोगी प्रत्यक्ष एंव अप्रत्यक्ष हो सकते है। जीवन में प्रत्यक्ष सहयोगी की तुलना में अप्रत्यक्ष सहयोगी का योगदान अधिक होता है हम अप्रत्यक्ष सहयोगी को नहीं जानते और प्रत्यक्ष सहयोगी को जानना नहीं चहते। माता,पिता व गुरू तीनों प्रत्यक्ष सहयोगी है।
उन्होंने कहा कि माता-पिता आपके साथ नहीं वरन् आप माता-पिता केसाथ रहते है। मां शब्द में वात्सल्य व प्यार भरा होता है। इसी शब्द में ब्रह्मा,विष्णु व शिव समाहित है। यदि घर मे मा की पूजा कर ली तो मानों आपने तीनों देवों की पूजा कर ली है। उन्होनें कहा कि जो व्यक्ति अपने माता-पिता का सगा नहीं होता वह अपनी पत्नी व बच्चों का भी सगा नहीं हो सकता है। कार्यक्रम में साध्वी आकांक्षा ने भजन प्रस्तुत किया।
इससे पूर्व संस्थान के महासचिव भंवर सेठ ने कहा कि जन्म लेने के बाद बच्चा सर्वप्रथम मां शब्द पुकारता है। हमे मां के गुणों को जीवन में उतारना चाहिये। संस्थान के सदस्य बी. एस. बक्षी, नरेश शर्मा ने मां शब्द पर स्वरचित कविता सुनाई। कार्यक्रम को फतहलाल नागौरी ने भी समारोह को संबोधित किया। जैन कॉन्फ्रेन्स के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओंकारसिंह सिरोया ने साध्वी डॉ. सुभाषा का परिचय दिया। कार्यक्रम का संचालन भंवर सेठ ने किया। अंत में धन्यवाद संस्थान अध्यक्ष चौसरलाल कच्छारा ने दिया।