हम सब क्या कुछ कर पा रहे हैं अपने, समाज, क्षेत्र और देश के लिए। थोड़ी गंभीरता से सोचें तो बहुसंख्य लोगों की आत्मा से यही आवाज आएगी कि ऎसा कुछ नहीं कर पा रहे हैं जो नया हो या जिसे अपने जीवन की उपलब्धियों में गिना जा सके।
रोजमर्रा की जिंदगी की आपाधापी और रूटीन की व्यस्तताओं के बाद इतना समय ही कहां बच पाता है हमारे लिए, कि हम कुछ नया करके दिखा सकें। जिनके पास कोई काम नहीं है वे फालतू की चर्चाओं, बहसों और नाकारा गलियारों में भ्रमण करने, औरों के पीछे दुम हिलाते हुए परिभ्रमण में व्यस्त हैं। जिनके पास रोजमर्रा के निर्धारित काम बंधे हुए हैं वे सारे के सारे सामान्य जिंदगी से ऊपर न कुछ सोच पा रहे है, न कुछ कर पा रहे हैं। पेट भरने और घर चलाने के अलावा भी हमारे काफी दायित्व हैं अपनी सरजमीं के प्रति।
जिनके पास हुनर और सामर्थ्यह है वे अपनी ऊर्जा अपने ही अपने पेट भरने और घर भरने में लगा रहे हैं। उनके पास समाज, क्षेत्र और देश के लिए नया करने और करके दिखाने के लिए बहुत कुछ है मगर वे सारे के सारे अपने टुच्चे स्वार्थों में ही मस्त हैं और सार्वजनीन कर्मों के प्रति उदासीनता ओढ़े हुए टाईमपास जिंदगी जीने के आदी हो चले हैं।
इनमें सारी किस्मों वाले हैं। पांच साला से लेकर साठ साला तक के भी हैं और वे भी हैं जो हर बाड़ों में घुसपैठ करते रहते हैं या कि जिनका अपना कोई बाड़ा है ही नहीं, बाड़े वाले भी खूब सारे हैं और इनसे ज्यादा वे हैं जो बाड़ों से बाहर हैं और स्वच्छंद, उन्मुक्त जिंदगी जीने को ही दुनिया का सर्वोच्च तथा अंतिम सत्य मानते हैं।ऎसे लोग हरी घास और लड्डू, जलेबी या चाशनी की गंध पाकर किसी भी बाड़े में घुस भी सकते हैं और झूठन चाट लेने के बाद बिना डकार लिए दूसरे बाड़े भी तलाश लिया करते हैं।
जो लोग कुछ करना जानते ही नहीं, जिनमें हुनर या बौद्धिक कौशल है ही नहीं, अथवा जो नाकारा हैं उनके बारे में कुछ सोचने और कहने का अधिकार हम भले ही नहीं रखें, मगर उन लोगों के बारे में पूर्ण एवं स्वतंत्र चिंतन का अधिकार हम सभी को है जो कुछ करने के लिए ही पैदा हुए हैं लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे हैं। कभी अपने स्वार्थ के पाशों में बंधे रहने की विवशता की खातिर अथवा जानबूझकर कुछ नहीं कर पा रहे हैं, कभी इंसानियत को गिरवी रखकर बैठ जाने के कारण।
इनमें खूब सारे लोग समय के महत्त्व को जानते-पहचानते भी हैं मगर ये स्वाभिमानहीन और दुमहिलाऊ जिंदगी जीने को विवश हैं। इनमें से कई अपने ही स्वार्थों में रमे रहने के कारण अथवा अपने अपराधों पर परदा ढंके रखने की खातिर औरों के दबावों में जी रहे हैं जैसे कि विषैले नाग किसी सपेरे की पिटारी में। ऎसे लोग फिर अपने आपको टाईमपास बना लिया करते हैं ताकि न कुछ नया करना पड़े और न कोई आफत सामने आए। ये लोग अपने जीवन की दिशा को शुतुरमुर्गी अवस्था में लाकर फिक्स कर देते हैं, जो चल रहा है, जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहता है, चुपचाप अपने लाभों में रमे रहते हैं।
हम सभी के लिए आत्मचिंतन का बड़ा विषय यह है कि हम ऎसा क्या कर पा रहे हैं जो समाज या देश के लिए हो। कोई क्षेत्र ऎसा नहीं बचा है जहाँ टाईमपास लोगों की भीड़ न हो। छोटे से बड़े तक कहे जाने वाले सभी किस्मों के लोग आजकल टाईमपास के सिवा कुछ नहीं रह गए हैं।
जो लोग सक्षम हैं वे भी ‘चुपचाप देखो और समय गुजारो’ वाली स्थिति में आ गए हैं, वे लोग भी ऎसे ही हो गए हैं जिनमें कुछ-कुछ संभावनाएं दिखती हैं। कुछेक लोग हैं जो समाज, क्षेत्र तथा देश के लिए कुछ न कुछ नया करने का जज्बा रखते हैं लेकिन उन्हें समाज के विघ्नसंतोषियों, आपराधिक एवं नकारात्मक मानसिकता वालों और नाकारा लोगों की वजह से कृत्रिम समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है, जबकि काफी लोग अपने अकेले के बूते भी कई सारे श्रेष्ठ काम कर रहे हैं, जिन्हें देख लगता है कि ऎसे लोगों की समाज को जरूरत है और ये ही लोग देश के नवनिर्माण में अपनी भूमिका का निर्वाह कर पाने में समर्थ हैं। वरना हम जैसे अधिकांश लोग सिर्फ और सिर्फ टाईमपास होकर रह गए हैं। अपने लिए, अपनों के लिए और अपने दड़बों से जुड़े लोगों के लिए ही कुछ कर पाने से ही हमें फुर्सत नहीं है, ऎसे में औरों के लिए जीने की भावना कहाँ से आ पाएगी।
टाईमपास लोगों की सबसे बड़ी विशेषता यही होती है कि ये जहाँ कहीं होते हैं वहाँ आसानी से टाईमपास करने के सारे हुनरों में माहिर हो जाते हैं, इतने दक्ष कि कुछ न करें तब भी मस्ती से समय निकल जाता है। अपने भाग्य से हमें ऎसे काफी लोग मिल भी जाया करते हैं जो हमारे जयगान और सहयोग को सदैव तत्पर रहते हैं और हमसे लाभान्वित होते रहकर ‘अहो रूप-अहो ध्वनि’ के बोध वाक्य को सार्थक करते रहते हैं। इसमें दोनों का ही कल्याण समाहित है। टाईमपास लोगों का अपना कोई इतिहास नहीं होता। न उन्हें टाईम याद रख पाता है, न लोग। ऎसे लोग अपने कर्मक्षेत्रों में टाईम पूरा होने के बाद सायास भुला दिए जाते हैं।
अपने आस-पास भी ऎसे खूब सारे टाईमपास लोग हैं जो सारी क्षमताएं और पॉवर होने के बावजूद कुछ नहीं कर पा रहे हैं। उदासीनता ओढ़े बैठे रहने वाले ऎसे लोग किसी उत्सवी उल्लास का हिस्सा नहीं हो सकते बल्कि किसी शोकमग्न वातावरण पैदा करने के लिए ही योग्य माने जा सकते हैं। पेट और पिटारे ही भरना जीवन का लक्ष्य हो तो यह काम जानवर भी बिना किसी अतिरिक्त बुद्धि के कर लिया करते है।
आज भले ही हम टाईमपास होकर अपना समय गुजार दें, आने वाला कल हमारी नालायकियों, नाकामयाबियों और उदासीनता के लिए कभी माफ करने वाला नहीं होगा। हम सभी टाईमपास लोग पृथ्वी पर भार के सिवा कुछ नहीं हैं। हमारी माँए धन्य हैं जिन्होंने अपने पेट में नौ माह तक हमें झेले रखा पर धरती और समय ऎसे बोझ को सहन करते रहें, यह कतई जरूरी नहीं। अपनी टाईमपास छवि से बाहर निकलें, और समाज, क्षेत्र तथा देश के लिए कुछ करें।
– डॉ. दीपक आचार्य