महाराजा गजसिंह को प्रथम ‘मनीषी पं. जनार्दनराय नागर संस्कृति रत्न’
शिक्षा पर्व के रूप में मना जन्नू भाई का जन्म दिवस
उदयपुर। जोधपुर राजघराने के पूर्व महाराजा गजसिंह ने कहा कि समाज और साहित्य की समर्पित भाव से सेवा करने वाले साहित्यकार पं. जनार्दनराय नागर ‘जनूभाई’ बहुमुखी प्रतिभा और विराट व्यक्तित्व के पर्याय थे। पं. नागर ने ब्रिटिश एवं सामंती अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपनी निर्भीकता और अदम्य साहस का कई बार परिचय दिया।
वे जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ के संस्थापक मनीषी पं. जनार्दराय नागर की 103वीं जयंती पर सोमवार को विद्यापीठ के प्रतापनगर स्थित कम्प्यूटर एण्ड आईटी सभागार में आयोजित प्रथम जनार्दनराय नागर संस्कृति अलंकरण समर्पण समारोह को मुख्य् अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंकने कहा कि आम आदमी को शिक्षित करने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया। उनके ये दोनों रूप एक दूसरों के पूरक थे इसलिए ऐसा संभव होसका कि जनुभाई ने समाज सेवा और साहित्य सृजन के क्षेत्र में एक साथ सक्रिय रहकर देष सेवा की। उन्होंने कहा कि भाषा, संस्कृति व विरासत का संरक्षण होना आवष्यक है तथा राजस्थानी भाषा को शीघ्र मान्यता मिले।
अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति प्रो. बी.एस. गर्ग ने कहा कि देष के स्वाधीनता संग्राम में जिन साहित्यकारों ने जनता में चेतना जगाई उनमें मेवाड़ के पंडित नागर का नाम प्रमुख है। मेवाड़ में शिक्षा की अलख व समाज सेवा में पंडित नागर की महत्वपूर्ण भूमिका रहीं। वे बहुभाषाविद्, समाजसेवी, कुशल राजनैतिक, प्रखर वक्ता तथा सबसे ऊपर एक श्रेष्ठ मानव तथा मानवीय मूल्यों के तपस्वी थे। उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व क्रांतिकारी एवं प्रेरक रहा। स्वतंत्रता आंदोलन के साथ महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय चेतना, देश प्रेम और मेवाड़ में शिक्षा का शंखनाद किया। स्वागत करते हुए कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने जनता को शिक्षित करने का आंदोलन चलाया। उनका दृढ़ विश्वाोस था कि शिक्षित समाज ही राष्ट्र के उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकता है।पं. नागर ने महात्मा गांधी की बुनियादी शिक्षा पद्धति को मूर्तरूप देने के लिए आदिवासी ग्रामीण अंचलों में प्राथमिक एवं उच्च शिक्षा का शुभारंभ किया। प्रौढ़ शिक्षा को प्रयोगशाला के रूप में डेनमार्क के फाक स्कूल की परिकल्पना के अनुरूप स्थापित किया। अब उनके सपनों को पूरा करना ही प्रमुख ध्येय है। समारोह के विशिष्टप अतिथि सांसद अर्जुनलाल मीणा, चितौड़गढ सांसद सी. पी. जोशी व राजसमंद सांसद हरिओम सिंह राठौड थे। उन्होंने विद्यापीठ के शैक्षिक कार्यों की सराहना की तथा जनूभाई को स्मरण किया। भागवंत विश्वोविद्यालय अजमेर के कुलपति प्रो. लोकेश शेखावत, कुलप्रमुख भंवरलाल गुर्जर ने भी जनूभाई के व्यकित्व एवं कृतित्व पर अपना उद्बोधन दिया। इस अवसर पर बीएन संस्थान के पूर्व निदेशक तेजसिंह बांसी, साहित्यकार कल्याण सिंह शेखावत, रजिस्ट्रार देवेन्द्र जौहर, डॉ. प्रकाश शर्मा, डॉ. ललित पाण्डे्य, पार्षद धनपाल स्वामी, प्रो. एन. एस. राव, डॉ. सरोज गर्ग, शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। संचालन अनिता राठौड़ ने किया।
प्रथम ‘मनीषी पं. जनार्दनराय नागर संस्कृति रत्न’ समर्पण पुरस्कार
कुलपति प्रो. सारंगदेवोत ने बताया कि भारतीय कला संस्कृति एवं भाषा को संरक्षित करने एवं विरासत को बचाने में अतुलनीय योगदान देने हेतु प्रथम जनार्दनराय नागर संस्कृति अलंकरण समर्पण पुरस्कार से जोधपुर के महाराजा गजसिंह को प्रतीक चिन्ह, उपरणा, सम्मान पत्र, पगड़ी एवं 51 हजार रुपए नकद देकर सम्मान किया गया।
पुस्तक का विमोचन : अतिथियों द्वारा डॉ. लक्ष्मीनारायण नन्दवाना द्वारा राजस्थान विद्यापीठ के संस्थापक मनीषी पं. जनार्दनराय नागर पर लिखित ‘‘हमारे प्रेरणा स्त्रोत मनीषी पं. जनार्दनराय नागर’’ एवं महिला अध्यक्ष केन्द्र की निदेशक डॉ. मंजू मांडोत द्वारा लिखित ‘‘जनहितार्थ योजनाएं’’ पुस्तक का लोकार्पण किया गया।