उदयपुर। आचरण और विचार मानव में दो मुख्य भिन्नौ भिन्नत गुण हैं। आचरण बनता नहीं बल्कि व्यक्ति द्वारा बनाया जाता है जो मन के अधीन होता है। विचार बनाये जाते हैं, जो ज्ञान के अधीन होते हैं।
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि ‘कुमुद’ ने पंचायती नोहरे में आयोजित धर्मसभा में ये विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ज्ञान सद्पुरूषों से प्राप्त किया जाता है। ज्ञानरूपी प्रकाश के आने से जीवन में छाया अज्ञान का अंधकार दूर हो जाता है। सदाचार के आगमन से दुराचार, अच्छाइयों के आगमन से बुराइयंा स्वयमेव दूर हो जाती है।
मुनि ने कहा कि यदि आप वास्तविक शांति, तनाव से मुक्ति चाहते हो तो अपने चारों और निरीक्षण करें और उसके बाद आप पायेंगे कि सभी किसी न किसी पीड़ा से संतप्त है। अपने चारों और संताप का अथाह समुद्र है, हम उसमें से ही है। सभी पशु-पक्षी पंचेन्द्रिय जाति के है। जिनशासन में जाति को लक्ष्य रखकर भेदभाव को गलत माना है। जो पराए दु:ख को पहचान पाएगा, उसकी पीड़ा को समझेगा, वह अपने दु:ख को भी समझ पायेगा। कष्ट आना कर्मो का उदय होना है, इस बात को समझ ले तो आत्मशांति मिलेगी। सच्चाई को पहचान कर उसे समझना ही ज्ञान है। सभा को श्रमण मुनि ने भी सम्बोधित किया। संचालन श्रावक सघ मंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया।
जो ज्ञान से बाहर हैं वह ज्ञेय रूप : कनकनन्दी
आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनकनन्दी गुरूदेव ने ज्ञान- ज्ञेय, वाच्य- वाचक, पर्याय- पर्यायी आदि विषयों के कार्य कारण सम्बन्धों की विस्तार से विवेचना करते हुए उपस्थित श्रावकों को बताया कि ज्ञान से बाहर जितने भी पदार्थ हैं, वे सब ज्ञेय रूप हैं, ज्ञान रूप नहीं। जो उनको ज्ञान रूप मानते हैं ऐसे ज्ञानाद्वैतवादी अपने एकान्तू हठाग्रह से ज्ञान के यथार्थ स्वरूप को नहीं जानते। इतना ही नहीं उन्होंने ज्ञान का नाम भी नहीं सुना, ऐसा लगता है। आचार्य ने कहा कि जीव जब मिथ्यादृष्टि होता है तब वह विभिन्न मिथ्या मतों को मानता है।
श्रद्धा व विश्वास चलती है संसार की गाड़ी
आत्मरति विजय महाराज ने कहा कि संसार की गाड़ी श्रद्धा एंव विश्वास पर चलती है। परमात्मा के वचनों पर जब हमें श्रद्धा एवं विश्वास होता है तो यह सारा संसार भी अच्छा प्रतीत होता है। वे अजा श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजंक संघ जिनालय द्वारा हिरणमगरी से. 4 स्थित आज शांतिचंद्र सूरिश्वर आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जब हम अपने बाल कटवाने जाते है तो हमें बाल काटने वाले पर पूर्ण विश्वास होता है कि वह अपना कार्य सही तरीके से सम्पन्न करेगा। ऐसा ही पूर्ण विश्वास हमें परमात्मा पर भी करना होगा कि वह जो करेगा सही करेगा। इस अवसर पर हितरति विजय महाराज ने भी विचार व्यक्त किए।